पर्यावरणीय संकट प्राकृतिक प्रक्रियाओ मानवीय क्रियाओं द्वारा कुछ गंम्भीर घटनाये घटित होती है जो पर्यावरण और पारिस्थितिक का संतुलन भंग करती है और जीवधारियों के लिए प्रलयंकारी स्थिति उतपन्न कर देती है जब ये घटनाएं एक संकट या प्रकोप का रूप धारण कर लेती है तब इन्हें पयावरणीय संकट या आपदा कहा जाता है इस गंम्भीर घटनाओ से मानव को खतरा होता है और जान ,माल दोनों को क्षति होती है इसे दो भागों मे विभाजित किया जा सकता है १ प्राकृतिक आपदा या संकट २ मानव जनित आपदा या संकट १. प्राकृतिक आपदा संकट -- जब संकट प्राकृतिक कारणों से उत्तपन्न होता है तो इसे प्राकृतिक आपदा कहते है जैसे बाढ चक्रवात भूकंम्प भूस्खलन तीव्र वारिस सूखा ज्वालामुखी का फटना और शीत लहर २. मानव जनित आपदा या संकट -- मानव जनित संकट द्वारा की गइ क्रियाओं के कारण होता है जैसे प्रदूषण युद्ध में परमाणु शक्ति का प्रयोग जनसँख्या वृद्धि या विस्फोट होना रासायनिक परीक्षण आदि |
Water Crisis - जल संकट से जूझता मानव
जल संकट से जूझता मानव (Water Crisis) वर्तमान समय में उतपन्न पेय जल की समस्या -- जल मानव की मूल आवश्यकता है। यूँ तो धरातल का 70% से आधिक भाग जल से भरा है , किन्तु इस इनमे से अधिकतर हिस्से का पानी खरा अथवा पिने योग्य नहीं है। पृथ्वी पर मनुष्य के प्रयोग हेतु कुल जल का मात्र 0.6% भाग ही मृद जल के रूप में उपलब्ध है। वर्तमान समय में इस सिमित जल राशि का बड़ा भाग प्रदूषित हो चूका है फलश्वरूप पेय जल की समस्या उतपन्न हो गयी है। जिस अनुपात में जल प्रदूषण में वृद्धि हो रही है , यदि यह वृद्धि यूँ ही जारी रही , तो वः दिन दूर नहीं जब अगला विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जाये। जल की अनुपलब्ध्ता की इस स्थिति को ही जल संकट कहा जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है की वर्ष 2025 तक विकट जल समस्या से जूझती विश्व की दो - तिहाई ावादी अन्य देशों में रहने को मजबूर हो जाएगी। जल संकट के कारण -- जल संकट के कई कारण है। पृथ्वी पर जल के अनेक श्रोत है , जैसे- वर्षा , नदियां , झील , पोखर , झरने , भूमिगत श्रोत इत्यादि। पिछले कुछ वर्षों म...
Comments
Post a Comment