Water Pollution - जल प्रदूषण

जल प्रदूषण 

            जल को जीवन का आधार माना गया है। पिछले दो दसकों में जल के उपयोग एवं जलश्रोतों में अपशिस्ट पदार्थों के निष्कासन दोनों में ही वृद्धि हुई  है।  बढ़ते हुए औद्योगीकरण ने लोगों के रहन - सहन के स्तर में वृद्धि , जल विधुत उत्पादन एवं धर्मान्धता के फलस्वरूप जल के उपयोग में भी वृद्धि हुई है।  जल का श्रोतों  के निरंतर दोहन के कारण जीवन का यह आधार प्रदूषित होता जा रहा है। जीवों की व्यवस्थित वृद्धि एवं विकास के लिए जल के विभिन्न घटकों के मध्य संतुलन आवश्यक है। 
         जलीय घटकों की सान्द्रता में परिवर्तन या जल में हानिकारक घटकों का प्रवेश ही जल पदूषण का कारण है।  हमारे जल संसाधन हमारी लापरवाही और अदूरदर्शिता के कारण या तो व्यर्थ हो रहे है या प्रदूषित होते जा रहे है।


बहते हुए जल श्रोतों में प्रमुख है नदियाँ जिन्होंने हमारी पापों को धोया है हमारी गंदगी को स्वछ किया है हमारी फसलों को सींचा है परन्तु  होने वाले प्रदूषण को रोक- थाम के लिए हमने कोई सार्थक प्रयास नहीं किया है  

नदियों में प्रदूषण के प्रमुख कारण है

1 शहरों गाँवो के गंदे पानी के नाले नदियों तक पहुंचते है। 

2 औद्योगिक द्वारा विभिन्न प्रकार के रसायन पदार्थ जल को दूषित करते है। 

3 फसलों में लगने वाले कीटनाशक पदार्थ रसायन पानी में बहकर नदियों तक पहुंचते है। 

4 नदियों में प्रदूषण फैलने का प्रमुख श्रोत नदी किनारे  मल - मूत्र त्याग , पूजा सामिग्री का विसर्जन मरे हुए पशु तथा मनुष्यो के शव का विसर्जन भी प्रदूषण का कारण है। 

धर्मिक मान्यताओ के अनुसार गंगा नदी आज विश्व  की सबसे प्रदूषित नदी बन गयी है।  

दूसरी श्रेणी में आने वाला महत्वपूर्ण जल संसाधन तलाव और झीले है। गांव व शहरी इलाकों में बने तलवों को हम राष्ट्री धरोवर न ससमझते हुए अपने  निजी स्वार्थ में प्रयोग करते है जैसे कि अपने घरों के मल - मूत्र को नालियों के माध्यम से तलवो में धकेल देते है।  इसके स्वरूप हमारे अधिकांश तलाव प्रदूषित हो चुके है अथवा गर्मियों में पानी को व्यर्थ करते जाते है।  तलवों की एक प्रमुख समस्या पानी की कमी है। तलवों  पानी वहता है उसकी सुरक्षा हम नहीं कर पाते जिससे जल की कमी हो जाती है।  तलवों में जल की हानि गर्मियों में सूर्य की किरणे सीधी पड़ने के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है। तलवों के सूखने का दूसरा प्रमुख कारण  तलाव की मिटटी युक्त तली द्वारा  भूमि द्वारा अवशोशण इस जल की हानि को रोकने के लिए हम कुछ युक्तियाँ निकाल सकते है।  

1 तलाव की बनावट सीमेण्टेड कर  दे जिससे पानी का अवशोसण भूमि में नहीं होगा अथवा मोटी पोलेथिन सीट से तलाव की तली को ढका जा सकता है।  

रूस में तलवों को जलरोधक बनाने के लिए एक सस्ता तरीका अपनाया जा सक्ता है जिसमे तलवों के किनारे और तली को पहले गोवर से  लीपा जाता है फिर उसके ऊपर ही ,घास , केले के पत्ते तथा अन्य वनस्पतियों की एक परत विछायी जाती है तथा उसके ऊपर गीली मिटटी पोत दी जाती है और उसे दो तीन सप्ताह सूखने दिया जाता है यह युक्ति प्रयोगिक तौर पर काफी कारगर साबित हुयी।   


2 वाष्पीकरण से  जल की हानि  को रोकने के लिए हम तलवो की ऊपरी सतह पर कुछ अघुलनशील पदार्थ जैसे मोम की परत तेरा सकते है जिससे प्रकाश या ताप के सीधे के सीधे सम्पर्क में आने वाली सतह  कम हो जाएगी और निश्चय ही वाष्पीकरण में कमी आएगी। 

जल प्रदूषण के कारण -- 


1 घरेलू अपमार्जक घर में वर्तन , सर्फ , दीमक , मक्खी , मच्छर ,काक्रोच चूहे आदि को नष्ट करने हेतु उपयोग किये जाने वाले अपमार्जक पदार्थ  जैसे - D.D.T ,गेमेक्सीन , फिनायल आदि अपशिष्ट पदार्थों के साथ में निष्कासित होते है जो नदी और तलाव में पहुंच  जाते है 

 2 वहित मल -- मल - मूत्र अधिक मात्रा में जल श्रोतों में डालने पर अपघटकों की संख्या बढ़ जाती है इसके फलस्वरूप जल में O2 की मात्रा  कम हो जाती है प्रदूषित जल की जीव ऑक्सीजन मांग वायलॉजिकल आक्सीजन दिमाण्ड अधिक होती है।  

औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ -- कारखानों से पारा , सीसा आदि अन्य हानिकारक रासायनिक पदार्थ निष्कासित होते है जो नदी , समुद्र आदि में डाल दिए जाते है  जिससे जलीय प्रदूषण होता  है।  

मृत शरीर को जल में डालना -- अक्शर जोवों के अधजले शरीर को जल में वहा दिया जाता है इससे जल प्रदूषण होता है।  दूषित जल का प्रयोग करने से पशुओं के बीमार होने की संभावना होती है।  

जल प्रदूषण के प्रभाव EFFECT OF WATER POLLUTION -- 


 मनुष्यो पर प्रभाव -- 

           प्रदूषित जल जब मनुष्य पिने के माध्यम से ग्रहण करता है तो उसमे उपस्थित जीवाणुओं से अनेक प्रकार की बीमारियाँ जैसे  - हैजा तथा टाइफाईड ,डायरिया , पेचिश आदि रोग फेल जाते है।  जो कभी कभी महामारी का रूप भी ले लेते है पीलिया यकृत शोध एवं पोलियो जैसी बीमारियां भी दूषित जल में उपस्थित वायरस से होती  है जीवाणुओं  के अतिरिक्त प्रदूषित जल में मिश्रित अनेक रसायनों का भी  विपरीत प्रभाव पड़ता है।  यदि जल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होगी तो दांतो की विकृति के रोग हो जाते है    

जल जोवों एवं वनष्पति पर प्रभाव -- 

             जल प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव जल जीवों एवं वनष्पति पर होता है।  क्योकि इसका अस्तित्व जल में होता है और ये जलीय परस्थितिकी का अभिन्न  अंग होते है।  जल  में गघरेलू  गंन्दे अपशिष्टों का मिश्रण हो या औद्योगिक वहिस्त्राव के रसायनों का उसमे तापीय प्रदूषण हो या रेडियोधर्मी अथवा तेल प्रदूषण सभी जलीय जीवन को पहुंचते है।  तथा उनका नाश हो जाता है जल प्रदूषण जलीय वनस्पति को भी अनेक प्रकार से प्रभावित करता  है जल में नाइट्रेट्स और  फॉस्फोरस के मिश्रत हो जाने से शेलाव में वृद्धि  होती है प्रदूषित जल  में नील- हरित शैवाल अधिक हो जाते है।  इनकी आधिक वृद्धि से एक तो सूर्य का प्रकाश अंदर तक नहीं पहुंच पता तथा अनेक व्यर्थ की वनस्पति  का विकास हो जाता है और अनेक जलीय पौधे समाप्त हो जाते है।  

प्रदुषण को रोखने के उपाय ----- 


पर्यावरण संरक्षण की चेतना का विकाश पयावरणीय के माध्यम से किया जाना चाहिए 
पेय जल की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। 
घरेलु उपयोग मे आये वाहित जल को शुद्धिकरण के बाद बहार निकलना चाहिए।  
कृषि मै  कीटनाशी आदि रसायनो के प्रयोग को हतोत्शहित किया जाना चाहिए। 
औद्योगिक वाहित  जल के  उपचार की विधियों पर अनुसन्धान किये जाएँ। 


प्रदुषण पर नियंत्रण के उपाय ---


कूड़े -करकट , सड़े -गले  पदार्थों का उचित प्रकार निस्तारण करना  चाहिए। कृषि मे कीटनाशक दवाओं  का प्रयोग सिमित किया जाना आवश्यक है।  विशेष कर D.D.T एवं अन्य स्थायी प्रकारों के कीटनाशकों पर रोक लगाई जानी  चाहिए।  
जल मे यदि अनावश्यक शैवाल व् अन्य पौधे हों तो उनकी सफाई नियमित रूप से की जानी  चाहिए। 
सरकारी स्तर पर जल के प्रदुषण की नियमित जाँच होनी चाहिए।      



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Global Warming
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