प्रैसर कुकर- में खाना बनाना क्यों है ख़तरनाक Health Series Post 3 of 100


प्रैसर कुकर- में खाना बनाना क्यों है ख़तरनाक

           भोजन को पै्रसर कुकर में नहीं बनाना चाहिए क्यों कि प्रैसर कुकर में जो भोजन पकता है न तो उसमें सूर्य का प्रकाष और न ही पवन का स्पर्ष हो पाता है। प्रैसर कुकर में बना भोजन भाप के दबाब में फटता है जिससे उसका सूक्ष्म पोशक तत्व नश्ट हो जाता है। प्रैसर कुकर एल्युमिनियम का बना होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार भोजन को एल्युमिनियम के वर्तन में पकाने से डाइबिटीज, अर्थराइटस, ब्रोकाइटस एवं टीवी आदि बीमारियॉ हो जाती हैं। इसका मुख्य आधुनिक वैज्ञानिक कारण यह है कि जो कुछ आप प्रैसर कुकर में पका रहें हैं ।
             जब प्रैसर कुकर गर्म होता है तो उसके अन्दर का पानी गर्म होता है पानी से भाप बनती है जो प्रैसर कुकर में रखे भोजन पर दबाब डालती है अतिरिक्त दबाब के कारण दाल, चावल, सब्जी आदि पकने की वजह फट जाते हैं। इससे दाल के अंदर जो अणु हैं जो एक दूसरे को जकड़े हुए हैं एक दूसरे के साथ संयुक्त हैं भाप के दबाब के कारण ये टूट जाते हैं और दाल आदि प्रैसर कुकर में उबल जाते हैं पकते नहीं। पकने और उबालने में अन्तर होता है। उबालने से मुलायमता बढ़ जाती है और आपको लगता है कि दाल पक गई। उबालने से जो दाल के पोशक तत्व माइक्रोन्यूट्रियट पके नहीं फट गये। अगर दाल को अथवा अन्य सब्जी आदि को धीरे-धीरे पकाये ंतो उस भोजन के अन्दर माइक्रोन्यूट्रियंट पकते हैं धीमी आग से फटते नहीं।


ध्यान रहे तो सूक्ष्म पोशक तत्व हमारी मिट्टी में हैं। वही तत्व दाल, चावल, गन्ना, गेंहू आदि सभी में पाये जाते हैं। ये सूक्ष्म पोशक तत्व मिट्टी में कैल्षियम, आयरन, सिलिकॉन, ब्रोमीन आदि के रुप में मिलते हैं। यही हमारे भोजन में पाये जाते हैं। और इन्ही पोशक तत्वों से हमारा षरीर बना है।

              एक पौधे को हम देखते है कि वह जडों के द्वारा धीरे-धीरे भूमि से घुलनषील अवस्था में पोशक तत्व ले रहा है और रसाकर्शण के दबाब से यही पोशक तत्व पौधे के हर भाग में धीरे-धीरे पहुंॅचते हैं और वही पोशक तत्व हवा के सम्पर्क और सूर्य के प्रकाष की मदद से सम्पूर्ण भोजन बनाते हैं और पौधा हरा भरा रहता है।

              यही ठीक प्रक्रिया हमारे षरीर में होती है कि जितने सूक्ष्म पोशक तत्व हमारे षरीर को मिलेंगें और उतना ही षरीर स्वस्थ रहेगा। षरीर में जो कुछ है वही मिट्टी है। मिट्टी से भिन्न षरीर में कुछ भी नही है। जब हम मरते है तो षरीर को जला देते हैं तो 70-80 किलो का षरीर मात्र 20-25 ग्राम की मिट्टी है जो तत्व मिट्टी में हैं वही तत्व 20-25 ग्राम बचे अवषेश हैं।


               मिट्टी के बर्तन- प्रैसर कुकर में भोजन बनाने की अपेक्षा मिट्टी के बने वर्तन में दाल, सब्जी धीमी आग से बनती है तो हमारे पोशक तत्व फटते नही, ज्यादा उबलते नहीं बल्कि पकते और उन पके हुए माइक्रो न्यूट्रियंट को षरीर बहुत जल्द ग्रहण करता है। शरीर को भरपूर सप्लीमेंट्री न्यूट्रियंट मिल जाते हैं। इससे षरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलती है। मिट्टी के वर्तन पवित्र तो होते ही हैं, पर मिट्टी के वर्तन वैज्ञानिक भी होते हैं। मिट्टी की हॉण्डी में बनी दाल, सब्जी जल्दी खराब नहीं होती कुकर से बनी वस्तुऐं जल्दी खराब हो जाती हैं।

          मिट्टी की बनी दाल आदि का प्रयोगषाला में विष्लेशण किया गया है। तो पाया गया कि इसमें एक भी पोशक तत्व खराब नहीं होता और प्रैसर कुकर वाली दाल में मात्र 3ण्4ः पोशक तत्व बचे। इसलिए मिट्टी बर्तन में भोजन के सभी पोशक तत्व बचे रहते है। खीर जैसी हॉण्डी की बनती है जिसे खीर कहते हैं।
         
               हॉण्डी की खीर का स्वाद इतना उत्तम है कि वह एल्युमिनियम या कुकर में बनी हुई खीर का स्वाद नही होता अगर भोजन में गुणवत्ता रखनी है तो आप मिट्टी के वर्तन में भोजन पकाऐं आप रोग मुक्त रहेंगें और डाइबिटीज अर्थराइटस खून की बीमारियॉ नहीं होंगी यानि कि वात पित्त कफ की कोई बीमारी नहीं रहेगी।


               मिट्टी वर्तन के अलावा आप भोजनं पकाते है तो वह कॉसा के वर्तन हैं जिसमें 3 प्रतिषत पोशक तत्व खत्म होते हैं तीसरे नम्बर पर है पीतल के वर्तन इसमें 7 प्रतिषत माइक्रोन न्युट्रियन खत्म होते हैं।


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