प्रथम विश्व युद्ध के कारण और परिणाम -- 

प्रथम विश्व युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि --

विश्व के इतिहास में प्रथम विश्व युद्ध एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यह 28 जुलाई 1914से आरम्भ होकर 11 नबंबर 1918 तक चला। यह अत्यन्त भीषण युद्ध था , जो मानवता के इतिहास में अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध हुआ।
यह युद्ध साम्राजयवादी शक्तियों के मध्य औपनिवेशिक बँटवारे को लेकर शुरू हुआ था। यह युद्ध विसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में विकसित सबसे शक्तिशाली एवं संघटित राष्ट्रों के मध्य लड़ा गया था। इस युद्ध ने एशिया और अफ्रीका में राज्यवादी आन्दोलन को तेज कर दिया था। इस युद्ध के परिणाम जहाँ मानवता - विरोधी थे , वहीं मानव कल्याण का मार्ग भी इस युद्ध ने प्रशस्त किया सदियों की वैज्ञानिक प्रगति का नकारात्मक पक्ष इस युद्ध में अधिक स्पष्ट हुआ। युद्ध के पश्चात पुनर्निर्माण के माध्यम से पुनः वैज्ञानिक प्रगति का मार्ग खुला।

प्रथम विश्व युद्ध के कारण --

उग्र राष्ट्रीयता की भावना का विकास -- राष्ट्रवाद के उदय के कारण यूरोप में उग्र राष्ट्रीयता की भावनाएँ प्रवल हो चुकी थी , जिससे अनेक राष्ट्रों के मध्य उतपन्न परम्परा तनाव , घृणा , द्वेष , पर्तिस्पर्धा इत्यादि की भवना ने युद्ध की स्थिति उतपन्न कर दी। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ की यूरोप के विभिन्न राष्ट्र अपने - अपने निजी स्वार्थ की लिए एक दूसरे का शोषण परतंत्र बनाने का प्रयास और परम्परा युद्ध करने लगे। इस प्रकार की उग्र राष्ट्र्रीयता इग्लेंड , स्पेन , पुर्तगाल , जर्मनी , इटली व् फ़्रांस जैसे देशों में विकसित हुई।

परम्परा शत्रुता की भावना का विकास -- 1871 में जर्मनी में फ़्रांस को पराजित करके उसके आलसेस एव लॉरेन प्रान्त को अपने अधिकार में ले लिया , जिसके कारण फ़्रांस  जर्मनी से अपमान का बदला लेने के लिए अपनी नीति में परिवर्तन किया। इसी प्रकार के कारणों से रूस और तुर्की भी परस्पर शत्रु हो गए। वहीं आर्थिक साम्राज्यवाद के कारण जर्मनी तथा इग्लेण्ड एक - दूसरे के शत्रृ हो गए थे  .इस प्रकार की शत्रुता ने प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

गुटबंधी का निर्माण -- प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व 1879 में जर्मनी के द्वारा आँस्ट्रिया - हंगरी के साथ एक प्रतिरक्षात्मक सन्धि की गई। इसे द्विपक्षीय गठबंधन भी कहा जाता है। इस सन्धि में इटली भी शामिल हो गया है। 1907 में यह सन्धि त्रिगुट सन्धि या त्रिपक्षीय गठबन्धन के नाम से  प्रसिद्ध  हुई इस गुट के परिणामस्वरूप ब्रिटेन , फ़्रांस व् रूस ने आपसी मतभेद को भुलाकर एक अन्य गट का गठन क्र लिया। इस प्रकार यूरोप दो सैनिक गुटों में विभाजित  हो गया।

आर्थिक पर्तिस्पर्धा -- यूरोप यूरोप के विभिन्न देश प्राकृतिक संसाधनों का अनुसन्धान विदोहन कर रहे थे तथा अपने माल को बेचने के लिए अविकसित देशों को अपना उपनिवेश बनाने में लगे थे। जिससे इन देशों में आपसी मतभेद उभरने लगे। इस स्थिति ने भी विश्व को युद्ध के निकट पहुँचा दिया।

साम्राजयवाद उदय -- 1890 के बाद ब्रिटेन और जर्मनी के मध्य विकसित वैमनस्य का महत्वपूर्ण कारण आर्थिक साम्राजयवाद था। इस समय जर्मनी की वस्तुएँ विदेशी व्यापार में अपना प्रभुत्व स्थापित कर रही थी , जिसके कारण ब्रिटेन को व्यापार में समस्या उतपन्न होने लगी , इसी कारण ब्रिटेन और जर्मनी में युद्ध आरम्भ हो गया।

औपनिवेशिक कूटनीति -- ब्रिटेन और जर्मनी आर्थिक एवं औपनिवेशिक सम्रज्य्वादी प्रवृति के कारण निरंतर प्रतिस्पर्द्धा कर रहे थे। इसके साथ ही जर्मनी ने अपनी जल सेना को शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया। इन सभी कारणों से इग्लेण्ड ने जर्मनी को अपने औपनिवेशिक साम्राज्य के लिए खतरा समझा।

बाल्कन की सन्धि -- 1878 के बाद जर्मनी का संरक्षण पाकर तुर्की का सन्तुलन बाल्कन क्षेत्रों के ईसाइयों पर भीषण अत्याचार एवं शोषण करने लगा। इस शोषण और अत्याचार के परिणामश्वरूप बाल्कन की जनता ने संगठित होकर तुर्की के शासन के विरुद्ध विद्रोह प्रारम्भ कर दिया। तुर्की की आन्तरिक अस्थिरता का लाभ उठाकर इटली ने 1911 में त्रिपोली पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इससे उत्साहित होकर बाल्कन राज्यों ने 1912 में तुर्की पर आक्रमण किया और तुर्की को बुरी तरह पराजित किया , इस प्रकार बाल्कन समस्या ने युओप में प्रथम विश्वयुद्ध का वातावरण तैयार कर दिया।

एक मजबूत अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का आभाव -- अनेक अन्तर्राष्ट्रीय कानून और सदाचार की संहिता होने के बावजूद एक मजबूत अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के आभाव में इन्हें लागू नहीं किया जा सका था। एक गुट में रहते हुए भी अनेक राष्ट्र विरोधी गुट के राष्ट्रों से सन्धि कर रहे थे तथा इनकी निगरानी करने वाला कोई संगठन नहीं था।

सेराजेवो हत्याकांड -- 28 जून 1914 की रात्रि में बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में आस्ट्रिया के युवराज आर्क डयूक फ्रांसिस फर्डिनेंड तथा उसकी पत्नी की सर्बिया के आतंकवादियों के द्वारा बम फेंककर हत्या करर दी गई। आस्ट्रिया ने इस हत्याकाण्ड के लिए सर्बिया को दोषी ठहराकर 28 जुलाई 1914 को उसके विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। यही प्रथम विश्वयुद्ध का तत्कालीक कारण सिद्ध हुआ।












































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