राजकीय नीती -

राजकीय नीती --


जब सरकार विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अपनी आय व्यय को नियंत्रित एवं नियमित करने के लिए कोई नीति बनती है , तो वह नीति राजकोषीय नीती कहलाती है प्रो आर्थर स्मिथीज़ के अनुरति है सार राजकोषीय नीति वह नीति है जिसे सरकार अपने व्यय तथा आगमन के कार्यक्रम को राष्ट्रिय आय उत्पादन तथा रोजगार पर वांछित प्रभाव डालने और आवांछित प्रभावों को रोकने के लिए प्रयुक्त करती है। 

राजकोषीय नीति के उद्देश्य -- 

पूँजी निर्माण -- आवांछित उपभोग को नियंत्रित करके पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करना 

निवेश प्रोत्साहन -- सन्तुलन एवं नियोजित निवेश करना। 

रोजगार सृजन -- राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य विकास कार्यों के माध्यम से रोजगार के नए अवसरों को उतपन्न करना है। 

मन्दी पर नियंत्रण -- विभिन्न प्रकार के करों की दर में परिवर्तन करके तथा सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके उत्पादन तथा रोजगार के अवसरों को बढ़ाना राजकोषीय नीति का मुख्य लक्ष होता है जिससे आर्थिक मन्दी पर नियंत्रण सम्भव होता है 

मूल्य नियंणतत्रण -- विभिन्न प्रकार के मौद्रिक उपायों तथा सार्वजनिक ऋण के द्वारा जनता की क्रय शक्ति को कम करने का प्रयास किया जाता है। इससे मुद्रास्थिति तथा मूल्य पर नियंत्रण स्थापित हो जाता है। 

आर्थिक विसमता में कमी -- राजकोषीय निति का एक मुख्य  आर्थिक विसमता में कमी लाना है इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करके तथा विकास  कार्यक्रमों के क्रियावंय द्वारा आर्थिक विसमता दूर करने का प्रयास किया जाता है। 

विकास के साधन -- समग्र एवं संतुलित विकास के लिए आवश्य साधनों की व्यवस्था करना भी राजकोषीय नीति का एक उद्देश्य है। 

राजकोषीय नीति के उपकरण -- 

राजकोषीय नीति के अंतरर्गत सरकार विभिन्न प्रकारों की नीतियों के माध्यम से आर्थिक लक्षों को प्राप्त करने का प्रयास करती है। 

करारोपड नीति -- सरकार द्वारा आम व्यक्ति तथा उद्योगों पर सामाजिक - आर्थिक विकास के लिए कर लगाया जाता है जो अनिवार्य अंश दान के रूप में होता है। इसके लिए सरकार जो नीति बनती है वह करारोपड नीति कहलाती है। 

1  करारोपड नीति के माध्यम से  सरकार आर्थिक विकास को दिशा प्रदान करने का कार्य करती है। 
2  अनुपयोगी तथा विलाशिता की वस्तुओं के आयात एवं उपभोग को हतोत्साहित किया जाता है। 
3  करारोपड का संतुलित एवं तार्किक विकास होना चाहिए जिससे साधारण  व्यक्ति एवं उद्योग पर आवश्यक भार न पड़े। 
4  इसे  देय क्षमता के अनुरूप होना चाहिए। 
5  करारोपड प्रणाली सरल सक्षम एवं पारदर्शी होनी चाहिए। 

सार्वजनिक व्यय नीति -- संघ राज्य एवं स्थानीय संस्थाओं द्वारा किए गए  व्यय को सार्वजनिक व्यय कहा जाता है सार्वजनिक व्यय के माध्यम से राज्य औद्योगिक विकास तथा आधार भूत संरचना के विकास को बढ़ावा देता है। इससे नए उपक्रमों की स्थापना होती है तथा आधार भूत सुविधाओं के विकास से आर्थिक कार्य में सुविधा प्राप्त होती है इससे आर्थिक विकास को गति प्राप्त होती है। 

सार्वजनिक ऋण नीति --  आर्थिक विकास के लिए सरकार को भारी मात्रा में धन राशि की आवश्यकता पड़ती है जो कभी - कभी राज्यों की क्षमता से अधिक होती है ऐसी स्थित्ति में सरकार आन्तरिक अथवा बाह श्रोतों से ऋण प्राप्त करती है जिसे सार्वजनिक कहा जाता है सार्वजनिक ऋण के माध्यम से सरकार उत्पादन कार्यों  को आगे बढाती है , साथ ही समाज कल्याण में भी इसका उपयोग किया जाता है। 

बजट नीति -- सरकार की आय , व्यय तथा ऋण संबन्धी नीतियां बजट नीति के अन्तर्गत आती है। बजट नीति के माध्यम से सरकार  आने वाले एक वर्ष के लिए सार्वजनिक आय , व्यय एवं अन्य विकासात्मक कार्यों की घोषणा करती है। 


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