भारत की औद्योगिक नीति --

औधोगिक नीति का अर्थ सरकार के उन निर्णयों एवं घोषणाओं से है , जिनमे उद्योगों के लिए अपनाई जाने वाली नीतियों का उल्लेख होता है। इस औद्योगिक नीति से सरकार की भावी योजनाओ एवं रणनीतियों का पता चलता है। इससे विभिन्न औद्योगगक क्षेत्रों की भूमिका तथा विदेशी पूँजी निवेश की दिशा तय होती है। स्वतंत्र्रता प्राप्ति से अब तक 6 बार औद्योगिक नीति की घोषणा की जा चुकी है। पहली औद्योगिक नीति 6 अप्रेल 1948 में घोषित की गई थी।

औद्योगिक नीति 1948 -- भारत की पहली औद्योगिक नीति में उद्योगों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया था।

1  सरकारी एकीकरण वाले उद्योग।
2  सरकारी एकीकरण वाले उद्योग , लेकिन कार्यरत निजी उद्योगों को छूट प्राप्ति वाले उद्योग।
3  निजी क्षेत्र में स्थापित उद्योग , जिन पर सरकारी नियंत्रण रखा गया।
4  निजी क्षेत्र में स्थापित उद्योग।

औद्योगिक नीति 1956 -- वर्ष 1956 में दूसरी औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इसमें उद्योगों की तीन श्रेणियाँ बनाई गई थी।

1  सरकारी एकाधिकार वाले 17 उद्योग। 
2  सरकारी नियंत्रण वाले 12 निजी उद्योग।
3  निजी क्षेत्र में स्थापित शेष सभी उद्योग।

औद्योगिक नीति 1991 --  स्वतंत्र भारत के इतिहास में वर्ष 1991 की औद्योगिक नीति सर्वाधिक क्रन्तिकारी एवं परिवर्तन लाने वाली नीति थी। इससे पहली बार उदारीकरण , निजीकरण तथा वैश्वीकरण को अपनाया गया। नई आर्थिक नीति में कई नए तत्वों को शामिल किया गया तथा पूर्ववर्ती नीतियों में व्यापक परिवर्तन किया गया।

कुछ प्रमुख परिवर्तन --

आरक्षित उद्योगों की संख्या काफी कम कर दी गई।
उद्योगों की स्थापना में लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त क्र दिया गया।
उदारवाद को अपनाकर विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया।
निजीकरण के माध्यम से सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश हुआ।
MRTP अधिनियम को समाप्त कर दिया गया।

उदारीकरण --

उदारीकरण से तातपर्य सरकारी नियंत्रण एवं पतिबन्ध में छूट देकर विदेशी तथा क्षेत्र के लिए आर्थिक उदारता अपनाना है। लाइसेंसिंग नियमो , एकाधिकार कानूनों , कराधान नियमो , श्रम कानूनों , आयात - निर्यात नियमो आदि में सुधार  या नकारात्मक कानूनों को हटाकर एक स्वतंत्रता अर्थव्यवस्था का नर्माण करना ही उदारीकरण है। भारत में वर्ष 1991 में उदारीकरण को अपनाया गया।

उदारीकरण के उद्देश्य --

उत्पादन प्रणाली को सक्षम बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय पर्तिस्पर्धा के लिए तैयार करना तथा भारतीय बाजार को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से जोड़ना।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित कर आर्थिक विकास को गति प्रदान करना।
आधुनिक तकनीक एवं सक्षम प्रबंधन को अर्थव्यवस्था में समावेशित करना।
औद्योगीकरण या उद्योगों की स्थापना की प्रक्रिया को सरल बनाना।
विविध प्रकार के प्रतिबंधों एवं लाइसेंसों में कमी लाना तथा उन्हें तर्कसंगत बनाना।
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कुछ व्यवसायों एवं उधोगो को छोड़कर शेष सभी को निजी क्षेत्र के लिए खोलेना।

निजीकरण --

उद्योगों का निजीकरण से तातपर्य सावर्जनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा व्यवसायों के स्वामित्त्व को निजि क्षेत्र को हस्तान्तरित करने से है। इसके अन्तर्गत सरकारी हिस्सेदारी को सीमित करके निजी क्षेत्र को व्यवसाय संचालन में स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।

निजीकरण के उद्देश्य -- वर्ष 1991 की नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत अपनाए गए निजीकरण के मुख्य उद्देश्य है

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश द्वारा उसमे निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करना।

विनिवेश के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में निजी क्षेत्र की सक्षम प्रबन्धकीय व्यवस्था को अपनाया।

घाटे में चल रहे सार्वजनक उपक्रमों को निजी क्षेत्र को सौंपना।

सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कुछ क्षेत्रों को छोड़कर शेष सभी में निजी क्षेत्र के निवेश को अनुमति प्रदान करना।




















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