विनिमय के लाभ या महत्व --
श्रम का विशिष्टीकरण -- किसी विशिष्ट वस्तु का विनिमय उस वस्तु के वृहत उत्पादन को बढ़ावा देता है। इससे उस वस्तु के उत्पादन में लगे हुए श्रमिक उसके उत्पादन में विशेषता प्राप्त कर लेते है। इस तरह विनिमय से श्रम का विशिष्टीकरण हो जाता है।
कौशल विकास -- जब श्रमिकों द्वारा एक ही कार्य बार - बार किया जाता है , तो वह इस कार्य में निपुण हो जाते है। अतः श्रम विभाजन के अन्तर्गत श्रमिकों कुशलता में वृद्धि होती है।
संयुक्त लाभ -- विनिमय प्रक्रिया द्वारा व्यक्तियों या राष्ट्रों को कम महत्व वाली वस्तुओं के बदले अधिक महत्व वाली वस्तुएँ प्राप्त होती है। इस प्रकार विनिमय के दोनों पक्षों को लाभ होता है।
विस्तृत बाजार पहुँच -- विनिमय ने बाजारों के क्षेत्र को अधिक बढ़ा दिया है। पहले बाजार एक ही स्थान पर होते थे , किन्तु अब बाजार प्रान्तीय , राष्ट्र्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीयय हो गए है।
वृहत उत्पादन लाभ -- वर्तमान में वस्तुओं का उत्पादन बड़े स्तर पर होता है तथा इनका बाजार में विक्रय किया जाता है। अतः विनिमय के आभाव में यह सम्भव नहीं था।
सन्तुष्टि में वृद्धि -- विनिमय द्वारा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ आसानी से प्राप्त हो जाती है , जिनका उपयोग करके वह सन्तुष्टि प्राप्त करता है।
आपातकाल में सहायक -- यदि कोई देश आपात स्थिति से ग्रस्त होता है , तब यह दूसरे देश से खाद्य सामग्री या वस्तुएँ विनिमय द्वारा प्राप्त करके संकट का सामना कर सकता है।
उन्नत जीवन - स्तर -- विनिमय प्रक्रिया द्वारा व्यक्तियों को अपनी आवश्यकताऔ की वस्तुएँ प्राप्त हो जाती है। अतः उनके रहन - सहन के स्तर में भी उन्नति होती है।
प्राकृतिक संसाधनों का तार्किक उपयोग -- प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग को विनिमय द्वारा सम्भव बनाया जाता है। इसके द्वारा संसाधनों की क्षति रूकती है तथा उत्पादन स्तर बढ़ता है
लागत लाभ -- बड़े स्तर पर वस्तुओं का उत्पादन होने पर उत्पादकों की आन्तरिक तथा बाह्म लाभ प्राप्त होते है। अतः उत्पादन लागत घटने से उत्पादकों द्वारा कीमते कम कर दी जाती है इससे उपभोक्ता को लाभ होता है।
तकनीकी विकास -- वर्तमान युग में विकासशील राष्ट्र विकसित राष्ट्रों से विनिमय के माध्यम से आधुनिक मशीनें आदि प्राप्त करके प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है। भारत में राउलकेला , बोकरो लोहा व् इस्पात कारखाने इसके उदाहरण है।
अनिवार्य वस्तुओं की उपलब्धता -- विनिमय द्वारा व्यक्ति तथा राष्ट्र्र ऐसी वस्तुएँ भी प्राप्त कर लेते है , जिन्हें वे स्वयं उतपन्न करने में असमर्थ होते है। उदाहऱणश्वरूप , भारत अन्य राष्ट्रों से मशीनें , तेल आदि का आयात करता है तथा साथ ही दूसरे राष्ट्रों को चीनी , चाय आदि निर्यात करता है।
श्रम का विशिष्टीकरण -- किसी विशिष्ट वस्तु का विनिमय उस वस्तु के वृहत उत्पादन को बढ़ावा देता है। इससे उस वस्तु के उत्पादन में लगे हुए श्रमिक उसके उत्पादन में विशेषता प्राप्त कर लेते है। इस तरह विनिमय से श्रम का विशिष्टीकरण हो जाता है।
कौशल विकास -- जब श्रमिकों द्वारा एक ही कार्य बार - बार किया जाता है , तो वह इस कार्य में निपुण हो जाते है। अतः श्रम विभाजन के अन्तर्गत श्रमिकों कुशलता में वृद्धि होती है।
संयुक्त लाभ -- विनिमय प्रक्रिया द्वारा व्यक्तियों या राष्ट्रों को कम महत्व वाली वस्तुओं के बदले अधिक महत्व वाली वस्तुएँ प्राप्त होती है। इस प्रकार विनिमय के दोनों पक्षों को लाभ होता है।
विस्तृत बाजार पहुँच -- विनिमय ने बाजारों के क्षेत्र को अधिक बढ़ा दिया है। पहले बाजार एक ही स्थान पर होते थे , किन्तु अब बाजार प्रान्तीय , राष्ट्र्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीयय हो गए है।
वृहत उत्पादन लाभ -- वर्तमान में वस्तुओं का उत्पादन बड़े स्तर पर होता है तथा इनका बाजार में विक्रय किया जाता है। अतः विनिमय के आभाव में यह सम्भव नहीं था।
सन्तुष्टि में वृद्धि -- विनिमय द्वारा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ आसानी से प्राप्त हो जाती है , जिनका उपयोग करके वह सन्तुष्टि प्राप्त करता है।
आपातकाल में सहायक -- यदि कोई देश आपात स्थिति से ग्रस्त होता है , तब यह दूसरे देश से खाद्य सामग्री या वस्तुएँ विनिमय द्वारा प्राप्त करके संकट का सामना कर सकता है।
उन्नत जीवन - स्तर -- विनिमय प्रक्रिया द्वारा व्यक्तियों को अपनी आवश्यकताऔ की वस्तुएँ प्राप्त हो जाती है। अतः उनके रहन - सहन के स्तर में भी उन्नति होती है।
प्राकृतिक संसाधनों का तार्किक उपयोग -- प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग को विनिमय द्वारा सम्भव बनाया जाता है। इसके द्वारा संसाधनों की क्षति रूकती है तथा उत्पादन स्तर बढ़ता है
लागत लाभ -- बड़े स्तर पर वस्तुओं का उत्पादन होने पर उत्पादकों की आन्तरिक तथा बाह्म लाभ प्राप्त होते है। अतः उत्पादन लागत घटने से उत्पादकों द्वारा कीमते कम कर दी जाती है इससे उपभोक्ता को लाभ होता है।
तकनीकी विकास -- वर्तमान युग में विकासशील राष्ट्र विकसित राष्ट्रों से विनिमय के माध्यम से आधुनिक मशीनें आदि प्राप्त करके प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है। भारत में राउलकेला , बोकरो लोहा व् इस्पात कारखाने इसके उदाहरण है।
अनिवार्य वस्तुओं की उपलब्धता -- विनिमय द्वारा व्यक्ति तथा राष्ट्र्र ऐसी वस्तुएँ भी प्राप्त कर लेते है , जिन्हें वे स्वयं उतपन्न करने में असमर्थ होते है। उदाहऱणश्वरूप , भारत अन्य राष्ट्रों से मशीनें , तेल आदि का आयात करता है तथा साथ ही दूसरे राष्ट्रों को चीनी , चाय आदि निर्यात करता है।
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