लोकसभा की शक्तियाँ अथवा कार्य --
विधायी शक्तियाँ -- साधारणतया किसी भी विधेयक को धन विधेयक को छोड़कर संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है , लगभग सभी महत्वपूर्ण विधेयक पहले लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते है। लोकसभा की अनुमति क बिना कोई भी कानून पास नहीं हो सकता है। गतिरोध उतपन्न होने पर राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। राज्यसभा से अधिक सदस्य संख्या होने के कारण लोकसभा संयुक्त बैठक में विधेयक को पास करने में विजयी रहती है। लोकसभा की शक्तियाँ राज्यसभा से अधिक प्रभावी होती है।
वित्तीय शक्तियाँ -- धन / वित्त पर वास्तविक नियंत्रण लोकसभा का होता है। बजट के संबंध में तथा धन / वित्त विधेयक के संबन्ध में लगभग समस्त शक्तियाँ लोकसभा को ही प्रदान की गई है। बजट एवं धन विधेयक सर्वप्रथम लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते है। लोकसभा में पारित होने के बाद ही धन विधेयक व् बजट को राज्यसभा में भेजा जाता है।
राज्यसभा को 14 दिन के अन्दर ऐसे विधेयकों को अपनी सिफारिश/ सुझाव सहित वापस करना पड़ता है। यदि राज्यसभा इनको 14 दिन के अन्दर वापस न करे तो लोकसभा विधेयकों को उसी रूप में , जिसमे पहले उसने पारित किया था , राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेज देती है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद वह विधेयक दोनों सदनों में पास किया हुआ समझा जाता है और वह अधिनियम का रूप ले लेता है।
कार्यपालिका शक्तियाँ -- केन्द्रीय मंत्रिमण्डल सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। लोकसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछकर , उनके कार्यों की आलोचना करके तथा विभिन्न प्रस्तावों प्रश्नकाल तथा अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा सरकार पर नियंत्रण लगाते है। अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद को त्याग - पत्र देना पड़ता है। इसके आलावा लोकसभह सरकारी विधेयक अथवा बजट को अस्वीकार करके , मंत्रिपरिषद के वेतन में कटौती आदि से भी मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण करती है।
संविधान संसोधन संबन्धी शक्तियाँ -- संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है। इस विषय में लोकसभा की शक्तियाँ राज्यसभा के समान है। लोकसभा में संविधान संशोधन का प्रस्ताव बहुमत से पारित होने के बाद इसे राज्यसभा में भेजा जाता है। संविधान संशोधन संबन्धी प्रस्ताव तब ही पारित मन जाता है , जब वह दोनों सदनों में अलग - अलग बहुमत से पारित हो जाए।
न्यायिक शक्तियाँ --
लोकसभा राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , महान्ययवादी , मुख्य निर्वाचन आयुक्त , सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयो के न्यायधीशों तथा सी ए जी आदि पर लगे आरोपों की राजयसभा के साथ मिलकर जाँच करती है तथा दोषी पाए जाने पर इनको हटाने के लिए कार्यवाही करती है।
लोकसभा अपने सदस्यों तथा सदन के विशेषाधिकारों का हनन करने वाले व्यक्ति अथवा संस्था को दण्डित कर सकती है।
निर्वाचन की शक्तियाँ -- लोकसभा अपनी कार्यवाही के सुचारु संचालन के लिए अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करती है तथा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भी लोकसभा के सदस्यों का योगदान रहता है।
संकटकालीन शक्तियाँ -- लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति दुवारा घोषित आपातकालीन घोषणाओं को स्वीकार अथवा रद्द कर सकती है। आपातकालीन घोषणाओं को एक महीने के अंदर दोनों सदनों द्वारा अलग - अलग समर्थन मिलना आवश्यक है। 44 वें संशोधन के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि यदि लोकसभा आपातकाल की घोषणा लागू रहने के विरुद्ध प्रस्ताव पारित कर दे तो आपातकाल की घोषणा लागू नहीं रह सकती लोकसभा के 10% सदस्य या अधिक सदस्य घोषणा के अस्वीकृति प्रस्ताव पर विचार करने के लिए लोकसभा की बैठक बुला सकते है।
विविध शक्तियाँ --
राज्यसभा की सहमति से सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में परिवर्तन करना।
राज्यसभा के साथ मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय समझौतो के विषय में कानून बनान।
राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेशों के संबन्ध में राज्यसभा के साथ मिलकर निर्णय लेना।
राज्यसभा की सहमति से नए राज्यों के प्रवेश , राज्य की सीमा एवं नाम आदि में परिवर्तन के संबंध में निर्णय लेना।
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