प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम --
प्रथम विश्वयुद्ध 20 वीं शताब्दी की अति भयंकर तथा दूरगामी परिणामों वाली घटना थी। यह इससे पहले हुए सभी युद्धों से कई गुना अधिक विनाशकारी था। इस युद्ध में करोड़ों की संख्या में सैनिक मारे गए , घायल हुए तथा जन - क्षति के अतिरिक्त अपार धन की हानि हुई।
जन - धन का भारी विनाश -- इस विश्वयुद्ध में जन और धन का अत्यधिक विनाश हुआ। इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों के लगभग 50 लाख सैनिक मारे गए तथा जर्मनी और उसके मित्र देशों के लगभग 80 लाख सैनिक मारे गए तथा लगभग 2 करोड़ से अधिक घायल हो गए। इस जनहानि के साथ - साथ धन व् सम्पत्ती की भी अपार क्षति हुई। दोनों पक्षों की ओर से इस युद्ध में लगभग 1 खरब 67 अरब डाँलर व्यय हुए। लगभग 12 अरब डॉलर की सम्पत्ति इस युद्ध में नष्ट हो गई।
आधुनिक हथियारों के निर्माण की होड़ -- यह युद्ध यूरोप और एशिया के महाद्वीपों में लड़ा गया था। विश्व की लगभग 87% जनता ने अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में भाग लिया था। इस युद्ध में विशाल टेंकों , विषैली गैसों , भारी मशीनगनों , हवाई जहाजों तथा पनडुब्बियों आदि का भारी मात्रा में प्रयोग किया गया। वैज्ञानिक प्रगति के कारण विभिन्न देशों में इन हथियारों के निर्माण की होड़ लग गई।
निरंकुश राजवंशों का अन्त -- इस विनाशकारी युद्ध के पश्चात अधिकांश राष्ट्र्रों में स्थापित निरंकुश राजवंशों का अन्त हो गया। रूस , जर्मनी एवं आस्ट्र्रीय में राजतंत्र का समापन हो गया। वहाँ गणतंत्र एवं संसद की स्थापना हुई तथा प्रजातन्त्रात्मक संविधान का निर्माण किया गया। इसके अतिरिक्त प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामश्वरूप फिनलैण्ड , पोलेण्ड , तुर्की , युगोस्लाविया , लिथुआनिया , लातविया आदि राज्यों में गणतांत्रिक शासन की स्थापना हो गई।
राष्ट्र्रीय भावना का विकास -- राष्ट्र्रीय भावना का विकास न केवल यूरोप में हुआ , बल्कि विश्व के अन्य भागों में भी इसका प्रसार हुआ। भारत , चीन मिश्र आदि इसके उदाहरण हैं। राष्ट्र्रीयता की भावना के आधार पर अमेरिका की राष्ट्र्रपति विल्सन ने आत्म - निर्णय के सिद्धांत को जन्म दिया। इसी सिद्धांत के आधार पर यूरोप में नवीन राष्ट्रीयता का विकास हुआ।
इस युद्ध के पश्चात राष्ट्रीयता तथा आत्म - निर्णय के सिद्धांतों को व्यापक बल मिला। इस विश्वयुद्ध के बाद पेरिस शान्ति सम्मेलन के निर्णय के अनुसार यूरोप में 8 नए राज्य बनाए गए। बाल्टिक प्रदेश में एस्टोनिया , लातविया और लिथुआनिया राज्य स्थापित हुए। पोलेण्ड तथा चेकोस्लोवाकिया , युगोस्लाविया , हंगरी और ऑस्ट्रिया को स्वतंत्र राज्य बनाया गया।
यूरोप में तानाशाही प्रवृत्ति को प्रोत्साहन -- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के साथ वर्षाय की सन्धि की। इस सन्धि की शर्तें अपमानजनक थीं , जिसने यूरोप में तानाशाही के उदय को प्रोत्साहित किया , जिसके फलस्वरूप जर्मनी में नाजीवाद , इटली में फासीवाद तथा रूस में साम्यवाद का उदय हुआ।
क्रमशः हिटलर , मुसोलिनी तथा लेनिन जैसे अधिनायक इनके प्रतिपादक थे। साथ ही स्पेन में फ्रेंकों का उतकर्ष हुआ तथा जापान में तानाशाही का आगमन हो गया।
समाजवाद की भावना का विकास -- प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप यूरोप में समाजवाद का तेजी के साथ विकास होने लगा। सभी देशों की सरकारें उद्योग - धन्धों पर नियंत्रण लगाने लगीं और श्रमिकों को सुविधाएँ देने लगीं।
आर्थिक मन्दी -- इस युद्ध में धन के भारी विनाश ने अनेक देशों को अमेरिका का कर्जदार बना दिया। विभिन्न देशों की मुद्राओं का अवमूलयन हो जाने से संसार में भयानक आर्थिक मन्दी फैल गई। दिसंबर 1922 में जर्मनी के मार्क प्राप्त किए जा सकते थे। इस युद्ध से अमेरिका के प्रभाव में वृद्धि हुई।
लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना -- प्रथम विश्वयुद्ध के भयंकर विनाश से भयभीत होकर तथा भविष्य में युद्धों को रोकने लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के गठन की आवश्श्यकता महसूस की गई। फलस्वरूप अमेरिका के राष्ट्रपति वुडोर विल्सन ने 14 सूत्री सिद्धांतों के आधार पर 10 जनवरी 1920 को राष्ट्र संघ की स्थापना की।
Comments
Post a Comment