पुर्तगालियों के पतन के कारण --
धार्मिक नीति -- पुर्तगाली भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहते थे। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को बलपूर्वक ईसाई बनाया तथा उनके धार्मिक स्थलों को तुड़वाया इससे भारतीय पुर्तगालियों के विरोधी बन गए।
अव्यवस्थित शासन -- पुर्तगालियों की शासन व्यवस्था अव्यवस्थित थी। उनकी न्याय - प्रणाली में कई दोष थे तथा दण्ड प्रक्रिया भी पक्षपातपूर्ण थी। इस कारण पुर्तगाली स्थानीय जनता का सहयोग प्राप्त करने में असमर्थ रहे।
अयोग्य संसाधनों में कमी -- पुर्तगालियों के आर्थिक संसाधन सीमित थे , उन्होंने अपने धर्म का प्रचार करने के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च किया। व्यापार क्षेत्र अधिक हो जाने के कारण व्यय राशि बढ़ गई। अतः वह अपने अधिकार क्षेत्र पर कुशल रूप में नियंत्रण नहीं कर सके।
अंतर्जातीय विवाह -- पुर्तगालियों द्वारा भारत में अपनी संख्या बढ़ाने के लिए स्थानीय जातियों से विवाह की नीति अपनाई गई। इस नीति के अनुसार , बहुत से पुर्तगाली युवकों का विवाह स्थानीय महिलाओं से किया गया। पुर्तगालियों की इस नीति से सामाजिक असन्तोष में वृद्धि हुई , जिस कारण स्थानीय लोगों का उन्हें सहयोग प्राप्त नहीं हो सका।
मुगल और मराठों का उदय -- पुर्तगालीयों के पतन का मुख्य कारण मुगल और मराठों का उदय भी रहा।पुर्तगाली इन दोनों सम्पन्न और शक्तिशाली राज्यों का सामना करने में असमर्थ रहे।
समुद्री शक्ति का अपेक्षाकृत कमजोर होना -- पुर्तगालियों ने प्रारम्भ में , समुद्र शक्ति के डम पर ही अपना प्रभुत्व स्थापित किया था , परन्तु ब्रिटिश नौसैनिक शक्ति के सामने वे कमजोर साबित हुए तथा उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
विदेशी शक्तियों का आगमन -- पुर्तगालियों के बाद भारत में डच और अंग्रेज आए। दोनों ही आर्थिक रूप से सम्पन्न थे। पुर्तगाली अधिकारी डच और अंग्रेजों से अपने हितों की रक्षा करने में असमर्थ रहे।
पुर्तगाल पर स्पेन का कब्जा -- पुर्तगालियों के पास समुद्री शक्ति का अभाव था। इस कारण उन्हें पश्चिमी देशों के सामने पराजित होना पड़ा। 1580 में स्पेन ने पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया। इसमें स्पेन के शत्रु पुर्तगाल के भी शत्रु बन गए। डच और स्पेन एक - दूसरे के कटटर शत्रु थे। इसी कारण डच और पुर्तगालियों में भारत में कड़ा मुकाबला हुआ।
धार्मिक नीति -- पुर्तगाली भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहते थे। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को बलपूर्वक ईसाई बनाया तथा उनके धार्मिक स्थलों को तुड़वाया इससे भारतीय पुर्तगालियों के विरोधी बन गए।
अव्यवस्थित शासन -- पुर्तगालियों की शासन व्यवस्था अव्यवस्थित थी। उनकी न्याय - प्रणाली में कई दोष थे तथा दण्ड प्रक्रिया भी पक्षपातपूर्ण थी। इस कारण पुर्तगाली स्थानीय जनता का सहयोग प्राप्त करने में असमर्थ रहे।
अयोग्य संसाधनों में कमी -- पुर्तगालियों के आर्थिक संसाधन सीमित थे , उन्होंने अपने धर्म का प्रचार करने के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च किया। व्यापार क्षेत्र अधिक हो जाने के कारण व्यय राशि बढ़ गई। अतः वह अपने अधिकार क्षेत्र पर कुशल रूप में नियंत्रण नहीं कर सके।
अंतर्जातीय विवाह -- पुर्तगालियों द्वारा भारत में अपनी संख्या बढ़ाने के लिए स्थानीय जातियों से विवाह की नीति अपनाई गई। इस नीति के अनुसार , बहुत से पुर्तगाली युवकों का विवाह स्थानीय महिलाओं से किया गया। पुर्तगालियों की इस नीति से सामाजिक असन्तोष में वृद्धि हुई , जिस कारण स्थानीय लोगों का उन्हें सहयोग प्राप्त नहीं हो सका।
मुगल और मराठों का उदय -- पुर्तगालीयों के पतन का मुख्य कारण मुगल और मराठों का उदय भी रहा।पुर्तगाली इन दोनों सम्पन्न और शक्तिशाली राज्यों का सामना करने में असमर्थ रहे।
समुद्री शक्ति का अपेक्षाकृत कमजोर होना -- पुर्तगालियों ने प्रारम्भ में , समुद्र शक्ति के डम पर ही अपना प्रभुत्व स्थापित किया था , परन्तु ब्रिटिश नौसैनिक शक्ति के सामने वे कमजोर साबित हुए तथा उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
विदेशी शक्तियों का आगमन -- पुर्तगालियों के बाद भारत में डच और अंग्रेज आए। दोनों ही आर्थिक रूप से सम्पन्न थे। पुर्तगाली अधिकारी डच और अंग्रेजों से अपने हितों की रक्षा करने में असमर्थ रहे।
पुर्तगाल पर स्पेन का कब्जा -- पुर्तगालियों के पास समुद्री शक्ति का अभाव था। इस कारण उन्हें पश्चिमी देशों के सामने पराजित होना पड़ा। 1580 में स्पेन ने पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया। इसमें स्पेन के शत्रु पुर्तगाल के भी शत्रु बन गए। डच और स्पेन एक - दूसरे के कटटर शत्रु थे। इसी कारण डच और पुर्तगालियों में भारत में कड़ा मुकाबला हुआ।
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