डच शक्ति उत्थान और पतन --
डचों का प्रमुख उद्देश्य दक्षिण - पूर्व एशिया के मसाला बाजार पर नियंत्रण स्थापित करना था। डच हॉलैण्ड नीदरलैण्ड के निवासी थे। भारत में 1602 में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की गई थी।
अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए डचों का पुर्तगालियों से संघर्ष हुआ। 1602 में बैंटम और 1605 में एम्बायोना डचों के कब्जे में आ गया। 1619 में डचों ने जकार्ता पर कब्जा कर वहाँ बटाविया नामक नगर बसाया तथा बाद में बटाविया को ही अपनी राजधानी बनाया। 1639 में गोवा , 1641 में मलक्का और 1658 में सीलोन भी डचों ने पुर्तगालियों से छीन लिया। डचों ने मछलीपटट्म 1605 , पुलिकट 1610 , और सूरत 1616 में व्यापारिक कोठियाँ स्थापित की। इसके अतिरिक्त चीनसुरा , कासिम बाजार , कड़ा नगर पटना , बालासोर , नागपटटम , कोचीन आदि में भी डचों की कोठियाँ थीं। डच भारत से मसालों के अतरिक्त नील , कच्चा रेशम , शीशा , चावल और अफीम आदि का भी व्यापार करते थे।
डच शक्ति के पतन के कारण --
डचों पतन के प्रमुख रूप से कई कारण थे , इनमे मुख्य रूप से अंग्रेजों की तुलना में डचों नौसेनिक - शक्ति का कमजोर होना , आर्थिक स्थिति कमजोर होना , मसलों के द्वीप पर अधिक ध्यान देना केन्द्रीयकरण की नीति पर अत्यधिक जोर देना आदि बिंदुओं को शामिल किया जाता है। 1759 में डच और अंग्रेजों के मध्य वेदरा का युद्ध हुआ। इस युद्ध में डचों का भारत से पूरी तरह पतन हो गया।
डच नौसैनिक - शक्ति का कमजोर होना -- डचों की नौसैनिक शक्ति उनके प्रतिध्वंधियों के मुकाबले कमजोर थी जिस कारण वे व्रिटिश नौसेना का सामना नहीं कर सके।
डच कम्पनी का डच सरकार द्वारा संचालित होना -- डच कम्पनी एक सरकारी कम्पनी थी , जिसका नियंत्रण डच सरकार के हाथ में था। अतः इस कम्पनी का भाग्य यूरोप की राजनितिक परिस्थितियों पर निर्भर था।
कम्पनी की कमजोर आर्थिक स्थिति -- डच कम्पनी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। इस स्थिति में इग्लैण्ड और फ्रांस के साथ संघर्ष में उलझ जाने के कारण यूरोप में हॉलैण्ड की स्थिति और खराब हो गई और उनकी स्थिति कमजोर हो गई।
इण्डोनेशिया के मसाला द्वीपों पर आर्थिक ध्यान देना -- शुरुआत से ही इण्डोनेशिया के मसाला द्वीपों पर ही डचों का अधिक झुकाव था , इसलिए उन्होंने भारत इ पूर्णरूप से ध्यान नहीं दिया।
डच सैन्य - शक्ति का भी दुर्बल होना -- डच कम्पनी सैनिकों की समुचित भर्ती , प्रशिक्षण एवं उनके संगठन पर समुचित ध्यान नहीं देती थी , जिस कारण उनकी सैन्य - शक्ति काफी दुर्लभ थी। इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप डच मजबूत ब्रिटिश शक्ति का सामना नहीं कर सके और वेदरा के युद्ध के पश्चात इनका भारत में अस्तित्व समाप्त हो गया।
डचों का प्रमुख उद्देश्य दक्षिण - पूर्व एशिया के मसाला बाजार पर नियंत्रण स्थापित करना था। डच हॉलैण्ड नीदरलैण्ड के निवासी थे। भारत में 1602 में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की गई थी।
अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए डचों का पुर्तगालियों से संघर्ष हुआ। 1602 में बैंटम और 1605 में एम्बायोना डचों के कब्जे में आ गया। 1619 में डचों ने जकार्ता पर कब्जा कर वहाँ बटाविया नामक नगर बसाया तथा बाद में बटाविया को ही अपनी राजधानी बनाया। 1639 में गोवा , 1641 में मलक्का और 1658 में सीलोन भी डचों ने पुर्तगालियों से छीन लिया। डचों ने मछलीपटट्म 1605 , पुलिकट 1610 , और सूरत 1616 में व्यापारिक कोठियाँ स्थापित की। इसके अतिरिक्त चीनसुरा , कासिम बाजार , कड़ा नगर पटना , बालासोर , नागपटटम , कोचीन आदि में भी डचों की कोठियाँ थीं। डच भारत से मसालों के अतरिक्त नील , कच्चा रेशम , शीशा , चावल और अफीम आदि का भी व्यापार करते थे।
डच शक्ति के पतन के कारण --
डचों पतन के प्रमुख रूप से कई कारण थे , इनमे मुख्य रूप से अंग्रेजों की तुलना में डचों नौसेनिक - शक्ति का कमजोर होना , आर्थिक स्थिति कमजोर होना , मसलों के द्वीप पर अधिक ध्यान देना केन्द्रीयकरण की नीति पर अत्यधिक जोर देना आदि बिंदुओं को शामिल किया जाता है। 1759 में डच और अंग्रेजों के मध्य वेदरा का युद्ध हुआ। इस युद्ध में डचों का भारत से पूरी तरह पतन हो गया।
डच नौसैनिक - शक्ति का कमजोर होना -- डचों की नौसैनिक शक्ति उनके प्रतिध्वंधियों के मुकाबले कमजोर थी जिस कारण वे व्रिटिश नौसेना का सामना नहीं कर सके।
डच कम्पनी का डच सरकार द्वारा संचालित होना -- डच कम्पनी एक सरकारी कम्पनी थी , जिसका नियंत्रण डच सरकार के हाथ में था। अतः इस कम्पनी का भाग्य यूरोप की राजनितिक परिस्थितियों पर निर्भर था।
कम्पनी की कमजोर आर्थिक स्थिति -- डच कम्पनी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। इस स्थिति में इग्लैण्ड और फ्रांस के साथ संघर्ष में उलझ जाने के कारण यूरोप में हॉलैण्ड की स्थिति और खराब हो गई और उनकी स्थिति कमजोर हो गई।
इण्डोनेशिया के मसाला द्वीपों पर आर्थिक ध्यान देना -- शुरुआत से ही इण्डोनेशिया के मसाला द्वीपों पर ही डचों का अधिक झुकाव था , इसलिए उन्होंने भारत इ पूर्णरूप से ध्यान नहीं दिया।
डच सैन्य - शक्ति का भी दुर्बल होना -- डच कम्पनी सैनिकों की समुचित भर्ती , प्रशिक्षण एवं उनके संगठन पर समुचित ध्यान नहीं देती थी , जिस कारण उनकी सैन्य - शक्ति काफी दुर्लभ थी। इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप डच मजबूत ब्रिटिश शक्ति का सामना नहीं कर सके और वेदरा के युद्ध के पश्चात इनका भारत में अस्तित्व समाप्त हो गया।
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