फ्रांसीसी शक्ति उत्थान और पतन --

1664 में फ्रांसीसी मंत्री कालबर्ट के नेतृत्व में फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई। भारत में फ्रांसीसियों ने सर्वपर्थम 1668 में सूरत तथा 1668 में मछलीपट्टम में अपनी व्यापारिक कोठियाँ बनाई। इसके बाद मध्य बंगाल के चन्द्र नगर में भी व्यापारिक  स्थापित करने में फ्रांसीसी सफल रहे। 1739 तक मालाबार तट पर स्थित माही और कोरोमण्डल तट पर स्थित करिकाल या कराईकल भी फ्रांसीसियों के कब्जे में आ गए।

1742 के बाद कम्पनी  उद्देश्य व्यापारिक लाभ कमाने के साथ ही राजनीतिक लाभ कमाना हो गया। उस समय ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी भी भारत में अपना साम्राज्य विस्तार कर रही थी। अतः ऐसे में ब्रिटिश और फ्रांसीसियों में संघर्ष होना स्वाभाविक था। ब्रिटिश और फ्रांसीसीयों का यह संघर्ष 20 वर्ष तक चला। इस अवधि में कर्नाटक के तीन युद्धों के नाम से भी जाना जाता है , जिसमे से प्रथम दो युद्धों का सफल नेतृत्व फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले ने किया था।

प्रथम कर्नाटक युद्ध -- 1744 - 48 में प्रथम कर्नाटक युद्ध अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य लड़ा गया , इस युद्ध का प्रमुख कारण फ्रांसीसीयों तथा अंग्रेजों के मध्य व्यापारिक प्रतिदवंद्विता और 1740 में इग्लैण्ड तथा फ़्रांस के बिच यूरोप में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार के प्रश्न पर संघर्षरत होना था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप मद्रास पर पुनः फ्रांसीसियों  का प्रभुत्व स्थापित हो गया। कर्नाटक के प्रथम युद्ध के पश्चात डूप्ले तथा फ्रांसीसी कम्पनी की शक्ति बढ़ गई थी और डूप्ले पहले से अधिक उत्साह के साथ भारत की राजनीति में खुलकर हस्तक्षेप करने लगा।
द्वितीय कर्नाटक युद्ध -- 1749 - 54 द्वितीय कर्नाटक युद्ध का प्रमुख कारण अंग्रेजों व् फ्रांसीसियों की पिछली शत्रुता थी। अंग्रेज अपनी हार का बदला लेने के लिए आतुर थे। सर्वपर्थम डूप्ले , चाँद साहब और मुजफ्फरगंज तीनों ने मिलकर कर्नाटक पर आक्रमण किया , जिसमे नवाब मारा गया तथा चाँद साहब को कर्नाटक का नवाब बनाया गया। इस युद्ध के पश्चात अंग्रेजों व् फ्रांसीसियों में सन्धि हुई तथा दोनों  ने एक - दूसरे के जीते गए देश वापस कर दिए।

तृतीय कर्नाटक युद्ध -- 1756 - 63 में यूरोप में 1756 में फ्रांस और इग्लैण्ड के बीच सप्तवर्षीय युद्ध शुरू हो गया गया , कर्नाटक का तृतीय युद्ध भी इसका ही परिणाम था। इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि दोनों देशों के बीच पेरिस की सन्धि हुई , इस सन्धि के अनुसार , पाण्डिचेरी माही तथा चंद्रनगर फ्रांसीसियों को वापिस कर दिए गए , लेकिन इन्हे वहाँ दुर्ग बनाने तथा सेना रखने की अनुमति नहीं दी गई। इस युद्ध में फ्रांसीसियों  की हार के साथ ही फ्रेंच ईस्ट इण्डिया की कम्पनी समाप्त हो गई। भारतीय व्यापार पर अंग्रेजों का एकाधिकार स्थापित हो गया। 









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