1857 की क्रान्ति के आर्थिक कारण --
भारतीय उद्योगों पर संकट -- औद्योगिक क्रान्ति के कारण इग्लैण्ड में आधुनिक कारखाने खोले गए थे। इन उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति भारत से सस्ते दामों पर की जाती थी। माल तैयार कराकर बाद में इसे ऊँचे दामों पर भारत के बाजारों में ही बेच दिया जाता था। इग्लैण्ड में बनी वस्तुएँ भारतीय वस्तुओं की तुलना में आकर्षक व् सस्ती होती थीं। ऐसे में भारत में बनी वस्तुओं की माँग घट गई और भारतीय उद्योग बन्द होने की कगार पर आ गए।
भूमि पर अनुचित दबाव -- 19 वीं शताब्दी के मध्य में भारतीय उद्योग - धन्धों का पतन शुरू हो गया। लाखों की संख्या में मजदूर बेरोजगार हो गए। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य करके अपनी आजीविका को चलाने के उद्देश्य से वे गाँव जाने लगे। भूमि का विभाजन छोटे - छोटे अलाभकारी जोतों में होता गया। इसका परिणाम यह हुआ की भूमि पर दबाव बढ़ने लगा , उत्पादन कम होने लगा तथा लोगों को भुखमरी एवं आर्थिक दुर्दशा का सामना करना पड़ा। भारत में अकाल पड़ने लगा। 1857 से पहले भारत में कम - कम सात अकाल पड़े , जिसमे 15 लाख लोग काल के गाल में समा गए। इससे भारतीयों में अंग्रेजी शासन के प्रति विद्रोह की भावना ने जन्म लिया।
किसानों की आर्थिक स्थिति तथा करों की अधिकता -- अंग्रेजों ने भारतीय उद्योगों और कृषि पर अत्यधिक कर लगाए। किसानो से कर वसूलने का अधिकार जमीदारों को मिल गया था। जमीदारों ने मनमाने तरिके से कर वसूली की , जिससे किसानों की दशा दयनीय होती चली गई। अंग्रेजों ने किसानों की दशा सुधारने की दिशा में कोई कार्य नही किया। इसके साथ ही लॉर्ड विलियम बैन्टिक की भूमि छीनने की नीति भी किसानों में अंग्रेजों के प्रति असन्तोष का कारण बनी।
बेरोजगारी -- भारतीय उद्योग - धन्धों के नष्ट हो जाने के कारण उनमें काम करने वाले कामगार बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गए। ऐसे लोगों को अंग्रेजों की ओर से रोजगार के कोई साधन उपलब्ध नहीं कराए गए। कई देशी राज्यों के ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो जाने पर भारतीय सैनिक भी बेरोजगार हो गए। भारतीय कामगार और सैनिक अपनी बेरोजगारी का कारण अंग्रेजों को ही मानते थे।
हस्तशिल्पियों की दुर्दशा -- अंग्रेजों द्वारा विदेशी माल के आयात , राजाओं जमीदारों आदि द्वारा हस्तशिल्पियों को दिए गए संरक्षण का समाप्त होने आदि कारणों से हस्तशिल्पियों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। उन्हें पेटभर भोजन तक नसीब नही होता था।
भारतीय धन का इग्लैण्ड जाना -- कम्पनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा वेतन , भत्ता , नजराना , व्यापार आदि से प्राप्त धन का एक बड़ा हिस्सा इग्लैण्ड भेजा जाता था। कम्पनी भी अपना कोष बढ़ाने के लिये प्रयत्नशील रहती थी। वे भारतीयों के हितों की अवहेलना करके केवल धन कमाने में लगे रहते थे। विशाल मात्रा में भारतीय धन को विदेश जाता देख भारतियों में काफी असन्तोष था।
भारतीय उद्योगों पर संकट -- औद्योगिक क्रान्ति के कारण इग्लैण्ड में आधुनिक कारखाने खोले गए थे। इन उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति भारत से सस्ते दामों पर की जाती थी। माल तैयार कराकर बाद में इसे ऊँचे दामों पर भारत के बाजारों में ही बेच दिया जाता था। इग्लैण्ड में बनी वस्तुएँ भारतीय वस्तुओं की तुलना में आकर्षक व् सस्ती होती थीं। ऐसे में भारत में बनी वस्तुओं की माँग घट गई और भारतीय उद्योग बन्द होने की कगार पर आ गए।
भूमि पर अनुचित दबाव -- 19 वीं शताब्दी के मध्य में भारतीय उद्योग - धन्धों का पतन शुरू हो गया। लाखों की संख्या में मजदूर बेरोजगार हो गए। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य करके अपनी आजीविका को चलाने के उद्देश्य से वे गाँव जाने लगे। भूमि का विभाजन छोटे - छोटे अलाभकारी जोतों में होता गया। इसका परिणाम यह हुआ की भूमि पर दबाव बढ़ने लगा , उत्पादन कम होने लगा तथा लोगों को भुखमरी एवं आर्थिक दुर्दशा का सामना करना पड़ा। भारत में अकाल पड़ने लगा। 1857 से पहले भारत में कम - कम सात अकाल पड़े , जिसमे 15 लाख लोग काल के गाल में समा गए। इससे भारतीयों में अंग्रेजी शासन के प्रति विद्रोह की भावना ने जन्म लिया।
किसानों की आर्थिक स्थिति तथा करों की अधिकता -- अंग्रेजों ने भारतीय उद्योगों और कृषि पर अत्यधिक कर लगाए। किसानो से कर वसूलने का अधिकार जमीदारों को मिल गया था। जमीदारों ने मनमाने तरिके से कर वसूली की , जिससे किसानों की दशा दयनीय होती चली गई। अंग्रेजों ने किसानों की दशा सुधारने की दिशा में कोई कार्य नही किया। इसके साथ ही लॉर्ड विलियम बैन्टिक की भूमि छीनने की नीति भी किसानों में अंग्रेजों के प्रति असन्तोष का कारण बनी।
बेरोजगारी -- भारतीय उद्योग - धन्धों के नष्ट हो जाने के कारण उनमें काम करने वाले कामगार बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गए। ऐसे लोगों को अंग्रेजों की ओर से रोजगार के कोई साधन उपलब्ध नहीं कराए गए। कई देशी राज्यों के ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो जाने पर भारतीय सैनिक भी बेरोजगार हो गए। भारतीय कामगार और सैनिक अपनी बेरोजगारी का कारण अंग्रेजों को ही मानते थे।
हस्तशिल्पियों की दुर्दशा -- अंग्रेजों द्वारा विदेशी माल के आयात , राजाओं जमीदारों आदि द्वारा हस्तशिल्पियों को दिए गए संरक्षण का समाप्त होने आदि कारणों से हस्तशिल्पियों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। उन्हें पेटभर भोजन तक नसीब नही होता था।
भारतीय धन का इग्लैण्ड जाना -- कम्पनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा वेतन , भत्ता , नजराना , व्यापार आदि से प्राप्त धन का एक बड़ा हिस्सा इग्लैण्ड भेजा जाता था। कम्पनी भी अपना कोष बढ़ाने के लिये प्रयत्नशील रहती थी। वे भारतीयों के हितों की अवहेलना करके केवल धन कमाने में लगे रहते थे। विशाल मात्रा में भारतीय धन को विदेश जाता देख भारतियों में काफी असन्तोष था।
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