1857 की क्रान्ति के सामाजिक व् धार्मिक कारण --
रीति - रिवाज पर प्रतिबन्ध -- तत्कालीन भारतीय समाज रूढ़िवादी परम्पराओं में जकड़ा हुआ था सती प्रथा , बाल विवाह प्रथा , विधवा विवाह प्रथा जैसी प्रथाएँ समाज में व्याप्त थीं। अंग्रेजों ने सुधारवादी नीति अपनाते हुए इन कुरीतियों पर प्रतिबन्ध लगा दिए। भारतीयों ने ऐसे अपनी परम्पराओं पर प्रहार माना और वह अंग्रेजों के प्रति असन्तोष रखने लगे।
पश्चात्य शिक्षा का प्रसार -- लॉर्ड विलियम बैन्टिक के कार्यकाल में पाश्चात्य शिक्षा पर जोर दिया गया , साथ ही शिक्षा का माध्यम भी अंग्ग्रेजी किया गया। ईसाइयों ने बड़े पैमाने पर शिक्षण संस्थाएँ खोलीं , जिनमे भारतियों को निःशुल्क शिक्षा देने की बात कही गई। इससे भारतीयों में यह भावना उतपन्न हो गई कि अंग्रेजों के कारण उनकी संस्कृति समाप्त हो जाएगी और वह अंग्रेजों से ईर्ष्या करने लगे।
कानून - निर्माण प्रक्रिया में भारतीयों की अनुपस्थिति -- ब्रिटिश अधिकारी भारतीय रीति - रिवाज से परिचित नहीं थे। इसके वावजूद वे भारतीयों के लिए कानून - बनाते थे। कानून - निर्माण काउन्सिल में भारतीयों भी को शामिल नहीं किया जाता था। भारतीयों के मुकदमों का का निर्णय भी अंग्रेज अधिकारी करते थे , जबकि अंग्रेजों के मुकदमों निर्णय का अधिकार भारतीय न्यायाधीशों को नहीं था। ऐसे में भारतीय जनमानस आक्रोशित होना स्वाभाविक था।
ईसाई धर्म का प्रचार - प्रसार -- ईसाई मिशनरियाँ अपने धर्म का प्रचार और प्रसार करने के लिए हिन्दुओं व् मुस्लिमो के धर्म की आलोचना करने लगीं। भारतियों को ईसाई बनाने के लिए नौकरियों में रियासत , पुरस्कार एवं अन्य प्रलोभन दिए। हजारों की संख्या में लोगों ने ईसाई धर्म कबूला। इससे भारतीय जनमानस में असन्तोष पनपने लगा।
सैनिक कारण --
भारतीय सैनिकों की उपेक्षा -- ब्रिटिश सेना में बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक भी शामिल थे। ब्रिटिश अधिकारी उन्हें हीनभावना से से देखते थे। इसके साथ ही भारतीय सैनिकों को अंग्रेजी सैनिकों के समान सुविधाएँ , वेतन , भत्ते आदि भी नहीं दिए जाते थे। उन्हें उच्च पदों पर भी नियुक्त नहीं किया जाता था। इससे भारतीय सैनिकों में असन्तोष बढ़ने लगा।
सामान्य सेना भर्ती अधिनियम -- लॉर्ड केनिंग के समय में सामान्य सेना भर्ती अधिनियम पारित किया गया। इस नियम के भारतीय सैनिक विदेशों में होने वाले युद्ध में भी भेजे जा सकते थे। उस समय भारतीय समुद्र पार करना पाप समझते थे। भारतियों में यह विचारधारा फैल गई की अंग्रेज उनका धर्म भ्र्ष्ट करने के लिए ऐसा कर रहे है।
अफगानों अंग्रेजों की पराजय -- 1838 से 1842 के मध्य प्रथम अफगान - ब्रिटिश युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेज हार गए। उधर 1854 से 1856 तक चले क्रीमिया के युद्ध में बड़ी संख्या में ब्रिटिश सेना नष्ट गई थी। अंग्रेजों की हार से भारतीयों का मनोबल बढ़ गया और उन्होंने उचित अवसर पाकर क्रान्ति का प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।
तात्कालिक कारण चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग -- अंग्रेज अधिकारीयों ने भारतियों के मन इ इतना अधिक असन्तोष उतपन्न कर दिया था कि वह पूर्ण रूप से विद्रोही हो चुके थे , बस एक चिंगारी की आवश्यकता थी , क्योकि उस समय सैनिकों को ऐसे कारतूस दिए जाते थे , जिन्हे दाँत से काटकर खोलना होता था। सैनिकों के बीच यह बात फैल गई की कारतूसों का निर्माण गाय और सूअर की चर्बी से हुआ है , इससे हिन्दू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं और उनमे रोष उतपन्न हुआ। उनका मानना था की धार्मिक आस्था पर चोट पहुँचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। ऐसे में सैनिकों ने विद्रोह करने का निश्चय किया।
रीति - रिवाज पर प्रतिबन्ध -- तत्कालीन भारतीय समाज रूढ़िवादी परम्पराओं में जकड़ा हुआ था सती प्रथा , बाल विवाह प्रथा , विधवा विवाह प्रथा जैसी प्रथाएँ समाज में व्याप्त थीं। अंग्रेजों ने सुधारवादी नीति अपनाते हुए इन कुरीतियों पर प्रतिबन्ध लगा दिए। भारतीयों ने ऐसे अपनी परम्पराओं पर प्रहार माना और वह अंग्रेजों के प्रति असन्तोष रखने लगे।
पश्चात्य शिक्षा का प्रसार -- लॉर्ड विलियम बैन्टिक के कार्यकाल में पाश्चात्य शिक्षा पर जोर दिया गया , साथ ही शिक्षा का माध्यम भी अंग्ग्रेजी किया गया। ईसाइयों ने बड़े पैमाने पर शिक्षण संस्थाएँ खोलीं , जिनमे भारतियों को निःशुल्क शिक्षा देने की बात कही गई। इससे भारतीयों में यह भावना उतपन्न हो गई कि अंग्रेजों के कारण उनकी संस्कृति समाप्त हो जाएगी और वह अंग्रेजों से ईर्ष्या करने लगे।
कानून - निर्माण प्रक्रिया में भारतीयों की अनुपस्थिति -- ब्रिटिश अधिकारी भारतीय रीति - रिवाज से परिचित नहीं थे। इसके वावजूद वे भारतीयों के लिए कानून - बनाते थे। कानून - निर्माण काउन्सिल में भारतीयों भी को शामिल नहीं किया जाता था। भारतीयों के मुकदमों का का निर्णय भी अंग्रेज अधिकारी करते थे , जबकि अंग्रेजों के मुकदमों निर्णय का अधिकार भारतीय न्यायाधीशों को नहीं था। ऐसे में भारतीय जनमानस आक्रोशित होना स्वाभाविक था।
ईसाई धर्म का प्रचार - प्रसार -- ईसाई मिशनरियाँ अपने धर्म का प्रचार और प्रसार करने के लिए हिन्दुओं व् मुस्लिमो के धर्म की आलोचना करने लगीं। भारतियों को ईसाई बनाने के लिए नौकरियों में रियासत , पुरस्कार एवं अन्य प्रलोभन दिए। हजारों की संख्या में लोगों ने ईसाई धर्म कबूला। इससे भारतीय जनमानस में असन्तोष पनपने लगा।
सैनिक कारण --
भारतीय सैनिकों की उपेक्षा -- ब्रिटिश सेना में बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक भी शामिल थे। ब्रिटिश अधिकारी उन्हें हीनभावना से से देखते थे। इसके साथ ही भारतीय सैनिकों को अंग्रेजी सैनिकों के समान सुविधाएँ , वेतन , भत्ते आदि भी नहीं दिए जाते थे। उन्हें उच्च पदों पर भी नियुक्त नहीं किया जाता था। इससे भारतीय सैनिकों में असन्तोष बढ़ने लगा।
सामान्य सेना भर्ती अधिनियम -- लॉर्ड केनिंग के समय में सामान्य सेना भर्ती अधिनियम पारित किया गया। इस नियम के भारतीय सैनिक विदेशों में होने वाले युद्ध में भी भेजे जा सकते थे। उस समय भारतीय समुद्र पार करना पाप समझते थे। भारतियों में यह विचारधारा फैल गई की अंग्रेज उनका धर्म भ्र्ष्ट करने के लिए ऐसा कर रहे है।
अफगानों अंग्रेजों की पराजय -- 1838 से 1842 के मध्य प्रथम अफगान - ब्रिटिश युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेज हार गए। उधर 1854 से 1856 तक चले क्रीमिया के युद्ध में बड़ी संख्या में ब्रिटिश सेना नष्ट गई थी। अंग्रेजों की हार से भारतीयों का मनोबल बढ़ गया और उन्होंने उचित अवसर पाकर क्रान्ति का प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।
तात्कालिक कारण चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग -- अंग्रेज अधिकारीयों ने भारतियों के मन इ इतना अधिक असन्तोष उतपन्न कर दिया था कि वह पूर्ण रूप से विद्रोही हो चुके थे , बस एक चिंगारी की आवश्यकता थी , क्योकि उस समय सैनिकों को ऐसे कारतूस दिए जाते थे , जिन्हे दाँत से काटकर खोलना होता था। सैनिकों के बीच यह बात फैल गई की कारतूसों का निर्माण गाय और सूअर की चर्बी से हुआ है , इससे हिन्दू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं और उनमे रोष उतपन्न हुआ। उनका मानना था की धार्मिक आस्था पर चोट पहुँचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। ऐसे में सैनिकों ने विद्रोह करने का निश्चय किया।
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