प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के कारण --
जब युद्ध प्रारम्भ हुआ था तब जर्मनी की स्थिति अत्यंत सुदृढ़ थी। जर्मनी के पास विशाल सुसंगठित शक्तीशाली सेना , अस्त्र - शस्त्र खाद्य सामिग्री आदि पर्याप्त मात्रा में थी। उसके सैनिक अनुशासित एवं प्रशिक्षित थे। फिर भी जर्मनी को प्रथम विश्वयुद्ध में हार का मुँह देखना पड़ा।
युद्ध की अधिक समयावधि -- यह युद्ध 4 वर्ष 3 माह और 11 दिन तक चला। युद्ध के परिप्रेक्ष में यह काफी लम्बा समय था। जर्मनी को इस बात का जरा भी अनुमान नहीं था कि युद्ध इतना लम्बा चलेगा। जर्मनी का अनुमान था कि वह एक दो माह में ही मित्र राष्ट्रों को पराजित कर देगा। इस प्रकार अधिक समय तक युद्ध का चलना जर्मनी की हार का एक प्रमुख कारण बना।
मित्र राष्ट्रों की सर्वश्रेष्ठता -- मित्र राष्ट्रों के पास जर्मनी की अपेक्षा अधिक जन धन था , उन्होंने इसका प्रयोग कर अपनी श्रेष्ठता सावित की। इग्लेण्ड मित्र राष्ट्रों का एक अहम देश था। इसकी सेना शक्ति का लोहा पूरा विश्व मानता था। इग्लेण्ड के जंगी जहाजों के सामने जर्मनी के जंगी जहाज टिक नहीं पाए तथा जर्मनी की पराजय हो गई।
जर्मन सेनापतियों में दूरदर्शिता की कमी -- जर्मन सेनापति युद्ध के संबन्ध में सटीक अनुमान लगाने में विफल साबित हुए। दूरदर्शिता की कमी के कारण वे मित्र राष्ट्रों की शक्ति का सही आकलन नहीं कर पाए।
युद्ध में अमेरिका का प्रवेश -- आरम्भ में अमेरिका ने इस युद्ध से दुरी बना रखी थी , लेकिन 6 अप्रैल 1917 को वह भी युद्ध में शामिल हो गया। इसके कारण मित्र राष्ट्रों की शक्ति और बढ़ गई। फलश्वरूप जर्मनी की पराजय निश्चित हो गई।
साम्यवादी प्रभाव -- रूस में लेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी सरकार की स्थापना 1917 में हुई थी। इस साम्यवादी क्रान्ति ने भी जर्मनी के पतन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रथम विश्व युद्ध का पराजित देशों पर प्रभाव --
प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी , टर्की , ऑस्ट्रिया , हंगरी जैसी शक्तियाँ पराजित हुई इस पराजय का इन देशों पर बहुत प्रभाव पड़ा।
वर्साय की सन्धि एवं जर्मनी पर प्रभाव -- प्रथम विश्वयुद्ध के लिए जर्मनी को दोषी मन गया तथा जर्मनी को एक सन्धि पर हस्ताक्षर करने पड़े , जिसे वरसाय की सन्धि खा गया। इसके अनुसार जर्मनी के अनेक इलाके छीनकर बेल्जियम , पोलेण्ड , चेकोस्लोवाकिया आदि देशों को दे दिए गए। आलसेस एवं लॉरेन प्रान्त तथा सार की कोयले की खान जर्मनी को फ्रांस को देनी पड़ी।
अन्य सन्धियाँ -- ऑस्ट्रिया तथा हंगरी ने सेन्ट जर्मनी सन्धि पर हस्ताक्षर किए जिसके द्वारा ऑस्ट्रिया तथा हंगरी को दो अलग - अलग राज्यों में बांट दिया गय्या। उनकी सैन्य शक्ति को नष्ट कर दिया गया तथा उन पर भविष्य में जर्मनी से आर्थिक संबन्ध रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
जब युद्ध प्रारम्भ हुआ था तब जर्मनी की स्थिति अत्यंत सुदृढ़ थी। जर्मनी के पास विशाल सुसंगठित शक्तीशाली सेना , अस्त्र - शस्त्र खाद्य सामिग्री आदि पर्याप्त मात्रा में थी। उसके सैनिक अनुशासित एवं प्रशिक्षित थे। फिर भी जर्मनी को प्रथम विश्वयुद्ध में हार का मुँह देखना पड़ा।
युद्ध की अधिक समयावधि -- यह युद्ध 4 वर्ष 3 माह और 11 दिन तक चला। युद्ध के परिप्रेक्ष में यह काफी लम्बा समय था। जर्मनी को इस बात का जरा भी अनुमान नहीं था कि युद्ध इतना लम्बा चलेगा। जर्मनी का अनुमान था कि वह एक दो माह में ही मित्र राष्ट्रों को पराजित कर देगा। इस प्रकार अधिक समय तक युद्ध का चलना जर्मनी की हार का एक प्रमुख कारण बना।
मित्र राष्ट्रों की सर्वश्रेष्ठता -- मित्र राष्ट्रों के पास जर्मनी की अपेक्षा अधिक जन धन था , उन्होंने इसका प्रयोग कर अपनी श्रेष्ठता सावित की। इग्लेण्ड मित्र राष्ट्रों का एक अहम देश था। इसकी सेना शक्ति का लोहा पूरा विश्व मानता था। इग्लेण्ड के जंगी जहाजों के सामने जर्मनी के जंगी जहाज टिक नहीं पाए तथा जर्मनी की पराजय हो गई।
जर्मन सेनापतियों में दूरदर्शिता की कमी -- जर्मन सेनापति युद्ध के संबन्ध में सटीक अनुमान लगाने में विफल साबित हुए। दूरदर्शिता की कमी के कारण वे मित्र राष्ट्रों की शक्ति का सही आकलन नहीं कर पाए।
युद्ध में अमेरिका का प्रवेश -- आरम्भ में अमेरिका ने इस युद्ध से दुरी बना रखी थी , लेकिन 6 अप्रैल 1917 को वह भी युद्ध में शामिल हो गया। इसके कारण मित्र राष्ट्रों की शक्ति और बढ़ गई। फलश्वरूप जर्मनी की पराजय निश्चित हो गई।
साम्यवादी प्रभाव -- रूस में लेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी सरकार की स्थापना 1917 में हुई थी। इस साम्यवादी क्रान्ति ने भी जर्मनी के पतन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रथम विश्व युद्ध का पराजित देशों पर प्रभाव --
प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी , टर्की , ऑस्ट्रिया , हंगरी जैसी शक्तियाँ पराजित हुई इस पराजय का इन देशों पर बहुत प्रभाव पड़ा।
वर्साय की सन्धि एवं जर्मनी पर प्रभाव -- प्रथम विश्वयुद्ध के लिए जर्मनी को दोषी मन गया तथा जर्मनी को एक सन्धि पर हस्ताक्षर करने पड़े , जिसे वरसाय की सन्धि खा गया। इसके अनुसार जर्मनी के अनेक इलाके छीनकर बेल्जियम , पोलेण्ड , चेकोस्लोवाकिया आदि देशों को दे दिए गए। आलसेस एवं लॉरेन प्रान्त तथा सार की कोयले की खान जर्मनी को फ्रांस को देनी पड़ी।
अन्य सन्धियाँ -- ऑस्ट्रिया तथा हंगरी ने सेन्ट जर्मनी सन्धि पर हस्ताक्षर किए जिसके द्वारा ऑस्ट्रिया तथा हंगरी को दो अलग - अलग राज्यों में बांट दिया गय्या। उनकी सैन्य शक्ति को नष्ट कर दिया गया तथा उन पर भविष्य में जर्मनी से आर्थिक संबन्ध रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
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