विद्रोह का आरम्भ और प्रमुख घटनाएँ --
1857 के विद्रोह की पहली घटना की शुरुआत 29 मार्च 1857 को बंगाल में स्थित बैरकपुर नामक स्थान पर ब्रिटिश छावनी में मंगल पाण्डे द्वारा किया गया। इसके परिणामश्वरूप 8 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डे को फांसी दी गई , जिससे विद्रोह भड़क गया।
1857 के विद्रोह के आरम्भिक स्थान --
मेरठ -- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत मेरठ से हुई थी। 9 मई 1857 को अश्वारोही सैनिक दल के 85 सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया था। इस पर अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें दण्डित किया। 10 मई 1857 को अन्य सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और जेल तोड़कर अपने साथियों को मुक्त करा लिया। इसके बाद मेरठ के सैनिकों ने दिल्ली का रुख किया।
दिल्ली -- यहाँ पहुँचकर सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर द्वितीय को अपना सम्राट घोषित कर दिया। प्रारम्भिक दौर में अंग्रेजों की स्थिति कमजोर होती चली गई। इसी बीच जनरल निकलसन के नेतृत्व में अंग्रेजों की बड़ी सेना पंजाब से दिल्ली आ गई। कई दिनों तक चले संघर्ष में अंग्रेजों की विजय हुई। कैप्टन हडसन ने सम्राट बहादुरशाह को बन्दी बना लिया। बाद में बहादुरशाह को रंगून भेज दिया गया , जहाँ निर्वासित जीवन व्यतीत करते हुए 1862 में उसकी मृत्यु हो गई।
कानपूर -- यहाँ विद्रोहियों का नेतृत्व नाना साहेब ने किया था। अपनी बहादुरी के बल पर उन्होंने अंग्रेज सेनापति व्हीलर को आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य कर दिया था। नाना साहब कुछ दिन तक कानपूर पर कब्जा जमाए रहे। 17 जुलाई 1857 में जनरल हेवलॉक ने कानपूर पर कब्जा जमाए रहे। 17 जुलाई 1857 में जनरल हेवलॉक ने कानपूर पर फिर से कब्जा कर लिया।
नाना साहब अपने सेनापति तात्या टोपे की मदद से नवंबर 1857 में कानपूर पर एक बार फिर कब्जा जमाने में सफल रहे। इस बार भी उनका कब्जा अधिक समय तक नहीं रह सका । अंग्रेज सेनापति कोलिन कैम्पबेल ने कानपूर पर पुनः अधिकार कर लिया। नाना साहब नेपाल चले गए , वहाँ कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई।
बनारस और इलाहाबद्द -- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रान्ति से बनारस और इलाहाबाद भी अछूते नही रहे। वहाँ भी विद्रोह हुआ , परन्तु जनरल नील ने बर्बरता और अत्याचार के बल पर बनारस व् इलाहाबाद का विद्रोह दबा दिया।
लखनऊ -- अवध के नवाब वाजिदअली शाह की पत्नी बेगम हजरत महल अपने अल्प वयस्क पुत्र विरजिस कदिर को नवाब की घोषणा के साथ 4 जून 1857 को विद्रोह कर दिया। लगभग 10 दिन तक युद्ध चला।
क्रांतिकारियों ने चीफ कमिश्नर हेनरी लॉरेन्स जनरल हेवलॉक और जनरल नील को मौत के घाट उतार दिया। कैम्पबेल ने 23 फरवरी 1858 को लखनऊ में विशाल सेना के साथ डेरा डाल दिया। बेगम हजरत महल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों का डटकर सामना किया , लेकिन सफल नहीं हो सके। अन्त में 21 मार्च 1858 को एक बार फिर लखनऊ अंग्रेजों के अधिकार में आ गया।
झाँसी -- यहाँ विद्रोह का नेतृत्व रानी लक्मीबाई ने किया था। नाना साहब के नेपाल चले जाने के बाद उनके सेनापति तात्या टोपे ने बेतवा के युद्ध में शिकस्त दी थी। रानी लक्मी बाई और तात्या टोपे ने ग्वालियर के नरेश सिन्धिया से मदद की गुहार लगाई। ग्वालियर नरेश तटस्थ रहा , लेकिन उसकी सेना ने विद्रोह कर दिया। इसी बीच ह्मरोज ने भी ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया युद्ध के दौरान रानी लक्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई। तात्या टोपे को अंग्रेजों ने फाँसी दे दी।
अन्य स्थानों पर विद्रोह --
बिहार -- यहाँ विद्रोह का नेतृत्व जगदीशपुर के कुँवर सिंह ने किया। अपने साथियों के साथ कुँवर सिंह ने बिहार के बहुत बड़े क्षेत्र पर कब्जा किया और कुछ समय के लिए वहाँ उनका प्रभुत्व भी रहा। इसके बाद अंग्रेजों को बिहार पर पुनः अधिकार करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसी संघर्ष में कुँवर सिंह अप्रैल 1858 को वीरगति को प्राप्त हो गए।
बरेली तथा शाहजहाँपुर -- विद्रोह की आग बरेली और शाहजहाँपुर तक भी फैली , लेकिन मई 1858 में केम्पबेल ने विद्रोहियों एवं क्रांतिकारियों पर कई तरह से अत्याचार किए एवं उन्हें प्रताड़ित किया और दोनों स्थानों पर विद्रोह को दबा दिया।
हरियाणा में विद्रोह -- यहाँ विद्रोह के प्रमुख केन्द्रों में हिसार , सिरसा , करनाल , रोहतक , गुड़गाँव तथा मेवात के क्षेत्र शामिल हैं। जीन्द के नवाब का नाम अंग्रेजों के पिट्ठुओं में शामिल था। कई विद्वानों का मानना है की 1857 का विद्रोह अम्बाला छावनी से ही प्रारम्भ हुआ था। अंग्रेजों द्वारा दिल्ली पर पुनः अधिकार हो जाने के बाद दिल्ली और उसके आस - पास हरियाणा के क्षेत्रों में भी विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया गया।
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