19 वीं शताब्दी के धर्मिक और समाजिक सुधार आन्दोलन --

19 वीं शताब्दी में भारत में अनेक सामाजिक एवं धर्मिक सुधार आन्दोलन हुए। इन आन्दोलनों का भारतीय जनमानस के मस्तिष्क पर व्यापक प्रभाव पड़ा। समाज से अन्धविश्वास तथा अन्य कुरीतियाँ दूर हो गई , जिन्होंने समाज को एक नई दिशा प्रदान की तथा राष्ट्र्रीयता की भावना को जाग्रत किया।

ब्रह्म समाज राजा राममोहन राय --

ब्रह्म समाज की स्थापना 1828 में कलकत्ता में राजा राममोहन राय ने की थी। ब्रह्म समाज 19 वीं शताब्दी का पहला सुधार आन्दोलन था। राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। राजा राममोहन राय को बंगाली , संस्कृत और अरबी - फारसी का अच्छा ज्ञान था। इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी , फ्रेंच और लैटिन भाषा का भी अध्ययन किया। राजा राममोहन राय ने एकेश्वरवाद में विकास किया और मूर्ति पूजा , अवतारवाद का विरोध किया। राजा राममोहन राय के उद्देश्यों का सार सर्वधर्म सम्भव था।

1815 में इन्होंने कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की। इनके द्वारा 1819 में बंगाली समाचार - पत्र संवाद कौमुदी की शुरुआत की गई तथा 1819 में ही इन्होंने हिन्दू कॉलेज की स्थापना की। इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें द परसेप्टस ऑफ जीसस द गाइड टू पीस एण्ड हेप्पीनेस हैं। राजा राममोहन राय ने पश्चात्य शिक्षा के प्रति अपना समर्थन जताते हुए खः था की ये हमारे समर्पण विकास के लिए आवश्यक है। इन्होंने भारत में पूंजीबाद का समर्थन भी किया। इन्हे राजा की उपाधि मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने प्रदान की थी। इन्होंने मिरात - उल अखबार का भी प्रकाशन किया। इन्हें नवीन युग का अग्रदूत नवजागरण का जनक और पत्रकारिता का अग्रदूत खा जाता है। 1833 में इनका इग्लैण्ड में देहान्त हो गया।

ब्रह्म समाज के सिद्धान्त --

1  ईश्वर एक है , वह निराकार एवं सर्वव्यापी है।

2   ईश्वर की पूजा आत्मा की शुद्धता से करनी चाहिए। इस कार्य के लिए किसी धार्मिक स्थल की आवश्यकता नहीं।

3   ईश्वर की आराधना करने का अधिकार समाज के प्रत्येक वर्ण और जाति को है।

4   सभी धर्मों  शिक्षा और उद्देश्यों का आदर करना चाहिए।

5   ईश्वर मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देता है।

6   मनुष्यों को उनके पाप और पुण्य के अनुसार ही ईश्वर दण्ड और पुरस्कार प्रदान करता है।

7   मनुष्यों को अपने पापों का प्रायश्चित करने के बाद ही मोक्ष प्राप्ति सम्भव है।

8   ब्रह्म समाज जाति प्रथा , अन्धविशवास तथा रूढ़ियों के विरुद्ध है। 

















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