सत्यशोधक समाज ज्योतिबा फूले --

सत्यशोधक समाज की स्थापना ज्योतिबा फूले ने 24 सितंबर 1873 को की थी। उन्होंने इस संगठन के माध्यम से दलित वर्गों को न्याय दिलाने की दिशा में आन्दोलन चलाया। इनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को सतारा महाराष्ट्र के कोटगन गाँव में हुआ। इनके परिवार में फूलों का काम होता था , इसलिए उन्हें फूले भी कहा जाता था। इन्होंने ब्राह्मणों के कर्मकाण्ड  विरोध किया और इसके प्रति लोगों को भी जागरूक किया। महाराष्ट्र में अछूतोद्धार एवं महिला शिक्षा  दिशा में कदम उठाने वाले पहले व्यक्ति थे। ज्योतिबा फूले ने गुलाम गिरी और सार्वजनिक सत्यधर्म नामक पुस्तक की रचना की। वर्ष 1888 में बम्बई की सभा में इन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। 28 नवमबर 1890  पूर्ण में इनका निधन हो गया।

सत्यशोधक समाज के प्रमुख सिद्धांत --

1  स्त्रियों समाज में उच्च स्थान दिलाने के लिए प्रेरित करना।

2  शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाना।

3  जातिगत भेदभाव , छुआछूत और वर्गीय भेदभाव का विरोध करना।

4  समाज में सर्वधर्म समभाव और पारस्परिक सहनशीलता  भावना उतपन्न करना।

5  अनेक देवी - देवता की पूजा के स्थान पर एकेश्वरवाद की भावना पर बल देना।

थियोसॉफिकल सोसायटी --

थियोसॉफिकल सोसायटी की स्थापना रूसी महिला हेलेन पेट्रोवाना ब्लावत्स्की तथा अमेरिकन कर्नल हेनरी स्टील आल्काट द्वारा 7 सितमबर 1875 को न्यूयॉर्क  गई थी। फरवरी 1879 में वह दोनों भारत आए। दिसंबर 1882 में मद्रास अब चेन्नई के निकट अडयार में थियोसॉफिकल सोसायटी का मुख्यालय खोला गया। भारत में एनी बेसेण्ट इस संस्था की अध्यक्षा थीं। भारत थियोसॉफिकल सोसायटी ने हिन्दू धर्म के विचारों को चारो ओर फैलाया। इस संस्था ने धर्मों के मूल सिद्धान्तों का भी प्रचार किया।

एनी बेसेण्ट इनका जन्म 1847 में आयरलैण्ड  में हुआ। वह 1887 में थियोसॉफिकल सोसायटी की सदस्य बनीं और 1893 में भारत आईं। यूरोपीय मूल से संबन्धित होने बाद भी ऐनी बेसेण्ट भारतीय संस्कृति के प्रति आस्थावान थीं। ऐनी बेसेण्ट ने अपने तर्क और ज्ञान से यह सिद्ध किया कि हिन्दू धर्म और संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है।  साथ ही उन्होंने सन्देश दिया की भारत को प्रगति पथ पर जाने के लिए अपनी प्राचीन संस्कृति और साहित्य का पुनरुत्थान करना होगा।

कर्नल अल्काट  मृत्यु के पश्चात 1907 में उन्होंने भारत में थियोसॉफिकल सोसायटी में अध्यक्षा का पद सम्भाला और जीवनभर इस पद पर कार्य करती रहीं। 20 सितंबर 1933 को अडयार में उनका निधन हो गया।

थियोसॉफिकल सोसायटी के सिद्धान्त --

1  जाति - पाति के भेदभाव का विरोध करना और परस्पर सहयोग की भावना विकसित करना।

2  हिन्दू धर्म और भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों तथा अंधविश्वासों को दूर करना।

3  सर्वधर्म समभाव की भावना को स्थापित करना।

4  जनमानस में विश्व - बन्धुत्व की भावना को विकसित करना।

5  भारतीयों को उनकी संस्कृति के प्रति आस्थावान बनाना।

6  मानव जाति  धार्मिक सिद्धान्तों के अध्ययन लिए प्रोत्साहित करना।

7  सभी धर्मों में हिन्दू और बौद्ध धर्म को सर्वोत्तम मानना।

थियोसॉफिकल सोसायटी के कार्य एवं उपलब्धियाँ -- हिन्दू धर्म में आई सामाजिक कुरीतियों को दूर करने दिशा में भी थियोसॉफिकल सोसायटी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1  थियोसॉफिकल सोसायटी ने धार्मिक , सामाजिक और शैक्षिक क्षेत्र के साथ राजनितिक क्षेत्र में भी भारतीयों को जागरूक करने का कार्य किया।

2  ऐनी बेसेण्ट  सोसायटी के माध्यम से भारतीयों में अपने धर्म और संस्कृति के प्रति आस्था उतपन्न की।

3  थियोसॉफिकल सोसायटी के माध्यम से भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित हुई।

4  शिक्षा के क्षेत्र में ऐनी बेसेण्ट ने सुधार लाने के उद्देश्य से 1898 में बनारस में सेण्ट्रल हिन्दू कॉलेज की स्थापना की जिसे 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रूप में प्रतिस्थापित किया गया।

5  ऐनी बेसेण्ट ने 1916 में मद्रास में होमरूल लीग नामक संस्था की स्थापना की और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आन्दोलन चलाया।

6  1917 में ऐनी बेसेण्ट भारतीय राष्ट्र्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी बनीं। 

















Comments

Popular posts from this blog

Water Crisis - जल संकट से जूझता मानव

जल प्रवाह प्रणाली

Eco Club