पेरिस शान्ति सम्मेलन --
प्रथम विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों ब्रिटेन , फ्रांस , अमेरिका आदि ने धुरी राष्ट्रों और उसके सहयोगी राष्ट्र ऑस्ट्रिया , हंगरी , बुल्गारिया और तुर्की को पराजित किया था। विजयी राष्ट्रों ने युद्धोत्तर काल की समस्याओ को सुलझाने के लिए पेरिस में 1919 में एक शान्ति सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें जर्मनी , ऑस्ट्रिया , बुल्गारिया , तुर्की आदि पराजित राष्ट्रों को छोड़कर विश्व के 27 राष्ट्रों के 70 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन में वुडरो विल्सन संयुक्त राज्य अमेरिका , क्लीमेंसो फ्रांस लॉयड जार्ज , ओरलेंडो तथा सोओनजी जापान शामिल था साथ ही 11 देशों के प्रधानमंत्री तथा 12 देशों के विदेश मंत्री भी इस शान्ति सम्मेलन का हिस्सा थे। 18 जनवरी 1919 को सम्मेलन की बैठक प्रारम्भ हुई। फ्रांस , इग्लैण्ड तथा अमेरिका ही इस सम्मेलन के मुख्य कर्ता - धर्ता थे। सम्मेलन के दौरान वुडरो विल्सन ने 14 सूत्री सिद्धांतो का प्रतिपादन किया , किन्तु फ्रांस और इग्लैण्ड की जिद के कारण इन सिद्धांतों की अवहेलना करके पराजित राष्ट्रों को अपमानजनक सन्धियों को स्वीकार करने पर बाध्य किया गया।
पराजित राष्ट्रों से की गई सन्धियाँ --
1 वर्साय की सन्धि 28 जून 1919 को जर्मनी के साथ हुई।
2 सेन्ट - जर्मेन की सन्धि 10 सितंबर 1919 ऑस्ट्रिया के साथ।
3 न्यूली की सन्धि 27 नवंबर 1919 बुल्गारिया के साथ।
4 ट्रायनान की सन्धि 4 जून 1920 हंगरी के साथ।
5 सेब्रे की सन्धि 10 अगस्त 1020 तुर्की के साथ।
6 लुसाने की सन्धि 24 जुलाई 1923 तुर्की के साथ।
इन सब सन्धियों में वर्साय की सन्धि ही सबसे महत्वपूर्ण थी।
वर्साय की सन्धि --
वर्साय की सन्धि 28 जून 1919 को जर्मनी के साथ की गई थी। इस सन्धि में कुल 440 धाराएँ थी।
जर्मनी से आलसेस एवं लॉरेन प्रदेश लेकर फ्रांस को दे दिया गया 1871 में यह जर्मनी ने फ्रांस से ही प्राप्त किया था।
फ्रांस की सुरक्षा की दृष्टि से जर्मनी के राइनलैंड में मित्र राष्ट्रों की सेना 15 वर्षों तक रहेगी तथा राइन नदी के आस - पास के क्षेत्रों को स्थायी रूप से निशस्त्र कर दिया जाए , ताकि जर्मनी किसी प्रकार की किलेबन्दी न कर सके।
सार क्षेत्र जर्मनी में कोयले के लिए प्रसिद्ध था। इस प्रदेश की शासन व्यवस्था की जिम्मेदारी राष्ट्र्र संघ को सौंप दी गई , किन्तु कोयले की खानों का स्वामित्व फ्रांस को दे दिया गया।
आलसेस तथा हॉलैंड के मध्य 10,000 वर्गमील का एक निष्पक्ष क्षेत्र स्थापित किया गया। इस पर मित्र देशों की सेनाओं के 10 वर्षीय अधिकार की व्यवस्था की गई।
यूरोप के बाहर जर्मनी के सभी उपनिवेश छीन लिए गए तथा राष्ट्र्र संघ की ओर से इनका प्रबन्ध विभिन्न मित्र देशों को सौंप दिया गया।
जर्मनी को कुल 25,000 वर्गमील क्षेत्रों की हानि उठानी पड़ी। यूरोप के बाहर उसकी लगभग 10 लाख वर्गमील क्षेत्र तथा 1 करोड़ 20 लाख लोगों से हाथ धोने पड़े।
सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत जर्मन सेना की अधिकतम संख्या एक लाख कर दी गई। हवाई जहाजों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त नौसेना शक्ति को भी सिमित कर दिया गया। जर्मनी को नौसेना के केवक 6 युद्धपोत रखने की इजाजत दी गई। पनडुब्बियों को मित्र राष्ट्रों को सौंपने की बात कही गई।
जर्मनी 1921 तक मित्र देशों को 1000 मिलियन पोलेण्ड की धनराशि देगा , जो सोने , कोयले , जहाजों आदि के रूप में दी जाएगी।
वर्साय की सन्धि का मूल्यांकन -- विश्व इतिहास में हुई अनेक सन्धियों में वर्साय की सन्धि सर्वाधिक चर्चित और विवादित रही है। इसने जर्मनी को छिन्न - भिन्न कर दिया। उसके उपनिवेशों को छीनकर उसे आर्थिक रूप से पंगु बना दिया गया। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य जर्मनी से बदला लेना था। वर्साय की सन्धि का दूरगामी परिणाम का उदय हुआ। यह सन्धि आगे चलकर द्वितीय विश्वयुद्ध का एक कारण बनी।
प्रथम विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों ब्रिटेन , फ्रांस , अमेरिका आदि ने धुरी राष्ट्रों और उसके सहयोगी राष्ट्र ऑस्ट्रिया , हंगरी , बुल्गारिया और तुर्की को पराजित किया था। विजयी राष्ट्रों ने युद्धोत्तर काल की समस्याओ को सुलझाने के लिए पेरिस में 1919 में एक शान्ति सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें जर्मनी , ऑस्ट्रिया , बुल्गारिया , तुर्की आदि पराजित राष्ट्रों को छोड़कर विश्व के 27 राष्ट्रों के 70 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन में वुडरो विल्सन संयुक्त राज्य अमेरिका , क्लीमेंसो फ्रांस लॉयड जार्ज , ओरलेंडो तथा सोओनजी जापान शामिल था साथ ही 11 देशों के प्रधानमंत्री तथा 12 देशों के विदेश मंत्री भी इस शान्ति सम्मेलन का हिस्सा थे। 18 जनवरी 1919 को सम्मेलन की बैठक प्रारम्भ हुई। फ्रांस , इग्लैण्ड तथा अमेरिका ही इस सम्मेलन के मुख्य कर्ता - धर्ता थे। सम्मेलन के दौरान वुडरो विल्सन ने 14 सूत्री सिद्धांतो का प्रतिपादन किया , किन्तु फ्रांस और इग्लैण्ड की जिद के कारण इन सिद्धांतों की अवहेलना करके पराजित राष्ट्रों को अपमानजनक सन्धियों को स्वीकार करने पर बाध्य किया गया।
पराजित राष्ट्रों से की गई सन्धियाँ --
1 वर्साय की सन्धि 28 जून 1919 को जर्मनी के साथ हुई।
2 सेन्ट - जर्मेन की सन्धि 10 सितंबर 1919 ऑस्ट्रिया के साथ।
3 न्यूली की सन्धि 27 नवंबर 1919 बुल्गारिया के साथ।
4 ट्रायनान की सन्धि 4 जून 1920 हंगरी के साथ।
5 सेब्रे की सन्धि 10 अगस्त 1020 तुर्की के साथ।
6 लुसाने की सन्धि 24 जुलाई 1923 तुर्की के साथ।
इन सब सन्धियों में वर्साय की सन्धि ही सबसे महत्वपूर्ण थी।
वर्साय की सन्धि --
वर्साय की सन्धि 28 जून 1919 को जर्मनी के साथ की गई थी। इस सन्धि में कुल 440 धाराएँ थी।
जर्मनी से आलसेस एवं लॉरेन प्रदेश लेकर फ्रांस को दे दिया गया 1871 में यह जर्मनी ने फ्रांस से ही प्राप्त किया था।
फ्रांस की सुरक्षा की दृष्टि से जर्मनी के राइनलैंड में मित्र राष्ट्रों की सेना 15 वर्षों तक रहेगी तथा राइन नदी के आस - पास के क्षेत्रों को स्थायी रूप से निशस्त्र कर दिया जाए , ताकि जर्मनी किसी प्रकार की किलेबन्दी न कर सके।
सार क्षेत्र जर्मनी में कोयले के लिए प्रसिद्ध था। इस प्रदेश की शासन व्यवस्था की जिम्मेदारी राष्ट्र्र संघ को सौंप दी गई , किन्तु कोयले की खानों का स्वामित्व फ्रांस को दे दिया गया।
आलसेस तथा हॉलैंड के मध्य 10,000 वर्गमील का एक निष्पक्ष क्षेत्र स्थापित किया गया। इस पर मित्र देशों की सेनाओं के 10 वर्षीय अधिकार की व्यवस्था की गई।
यूरोप के बाहर जर्मनी के सभी उपनिवेश छीन लिए गए तथा राष्ट्र्र संघ की ओर से इनका प्रबन्ध विभिन्न मित्र देशों को सौंप दिया गया।
जर्मनी को कुल 25,000 वर्गमील क्षेत्रों की हानि उठानी पड़ी। यूरोप के बाहर उसकी लगभग 10 लाख वर्गमील क्षेत्र तथा 1 करोड़ 20 लाख लोगों से हाथ धोने पड़े।
सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत जर्मन सेना की अधिकतम संख्या एक लाख कर दी गई। हवाई जहाजों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त नौसेना शक्ति को भी सिमित कर दिया गया। जर्मनी को नौसेना के केवक 6 युद्धपोत रखने की इजाजत दी गई। पनडुब्बियों को मित्र राष्ट्रों को सौंपने की बात कही गई।
जर्मनी 1921 तक मित्र देशों को 1000 मिलियन पोलेण्ड की धनराशि देगा , जो सोने , कोयले , जहाजों आदि के रूप में दी जाएगी।
वर्साय की सन्धि का मूल्यांकन -- विश्व इतिहास में हुई अनेक सन्धियों में वर्साय की सन्धि सर्वाधिक चर्चित और विवादित रही है। इसने जर्मनी को छिन्न - भिन्न कर दिया। उसके उपनिवेशों को छीनकर उसे आर्थिक रूप से पंगु बना दिया गया। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य जर्मनी से बदला लेना था। वर्साय की सन्धि का दूरगामी परिणाम का उदय हुआ। यह सन्धि आगे चलकर द्वितीय विश्वयुद्ध का एक कारण बनी।
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