राष्ट्र संघ की असफलता के कारण --
मजबूत राष्ट्रों की उदासीनता -- राष्ट्र्र संघ से सदैव मजबूत तथा प्रभावशाली देशों ने दूरी बनाई। इसका परिणाम यह हुआ कि संघ को इन देशों का पूर्ण सहयोग प्राप्त न हो सका। अमेरिका की प्रेरणा से ही यह संगठन अस्तित्व में आया था , किन्तु अमेरिका ही इसका सदस्य नहीं था। क्योकि अमेरिका की सीनेट ने वर्साय की सन्धि को मान्यता नहीं दी थी। इसी तरह जर्मनी और रूस भी काफी समय तक इसके सदस्य नहीं बने थे।
राष्ट्र संघ के आदेशों का उलंघन -- राष्ट्र संघ के संविधान के अनुसार जिन आदेशों को पारित किया गया था , उसे उसके ही सदस्य देशों के द्वारा नजरन्दाज किया गया। संघ के अपने सदस्य - राष्ट्रों ने इसके उद्देश्यों के अनुसार काम करने के बजाय अपने स्वार्थों को ध्यान में रखकर कार्य किया , जिससे राष्ट्र संघ को क्षति पहुँची।
युद्ध को रोकने की शक्ति का अभाव -- राष्ट्र संघ के पास अनेक आदेशों का पालन कराने के लिए कोई साधन या दण्डात्मक तथा निषेधात्मक अधिकार नहीं था। जब शक्तिशाली देश द्वारा किसी अन्य देश पर आक्रमण किया जाता था , तो राष्ट्र संघ केवल निन्दा प्रस्ताव पारित करता था और मूक दर्शक की तरह बैठा रहता था।
विजित राष्ट्रों में असन्तोष -- युद्ध के पश्चात हारे हुए देशों के भागों पर अधिकार कुछ विजेता - राष्ट्रों को ही दिया जाता था। इससे अनेक राष्ट्र्र अप्रसन्न तथा असन्तुष्ट रहते थे।
दोषपूर्ण संविधान -- राष्ट्र संघ के संविधान में अनेक दोष व्याप्त थे। राष्ट्र संघ को अपनी खुद की सेना रखने की इजाजत नहीं थी। सैन्यशक्ति के अभाव में में यह राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों में कोई प्रभावशाली भूमिका नहीं नीभा पाता था। युद्धों को जितने के लिए राष्ट्रों में लगी अस्त्र - शस्त्र की होड़ को संघ रोक पाने में असमर्थ था।
अस्त्र - शस्त्रों की होड़ -- संघ के सदस्य राष्ट्र्रों में अस्त्र - शस्त्रों की होड़ लगी थी। इस प्रकार की होड़ भी असफलता का एक प्रमुख कारण बनी।
मजबूत राष्ट्रों की उदासीनता -- राष्ट्र्र संघ से सदैव मजबूत तथा प्रभावशाली देशों ने दूरी बनाई। इसका परिणाम यह हुआ कि संघ को इन देशों का पूर्ण सहयोग प्राप्त न हो सका। अमेरिका की प्रेरणा से ही यह संगठन अस्तित्व में आया था , किन्तु अमेरिका ही इसका सदस्य नहीं था। क्योकि अमेरिका की सीनेट ने वर्साय की सन्धि को मान्यता नहीं दी थी। इसी तरह जर्मनी और रूस भी काफी समय तक इसके सदस्य नहीं बने थे।
राष्ट्र संघ के आदेशों का उलंघन -- राष्ट्र संघ के संविधान के अनुसार जिन आदेशों को पारित किया गया था , उसे उसके ही सदस्य देशों के द्वारा नजरन्दाज किया गया। संघ के अपने सदस्य - राष्ट्रों ने इसके उद्देश्यों के अनुसार काम करने के बजाय अपने स्वार्थों को ध्यान में रखकर कार्य किया , जिससे राष्ट्र संघ को क्षति पहुँची।
युद्ध को रोकने की शक्ति का अभाव -- राष्ट्र संघ के पास अनेक आदेशों का पालन कराने के लिए कोई साधन या दण्डात्मक तथा निषेधात्मक अधिकार नहीं था। जब शक्तिशाली देश द्वारा किसी अन्य देश पर आक्रमण किया जाता था , तो राष्ट्र संघ केवल निन्दा प्रस्ताव पारित करता था और मूक दर्शक की तरह बैठा रहता था।
विजित राष्ट्रों में असन्तोष -- युद्ध के पश्चात हारे हुए देशों के भागों पर अधिकार कुछ विजेता - राष्ट्रों को ही दिया जाता था। इससे अनेक राष्ट्र्र अप्रसन्न तथा असन्तुष्ट रहते थे।
दोषपूर्ण संविधान -- राष्ट्र संघ के संविधान में अनेक दोष व्याप्त थे। राष्ट्र संघ को अपनी खुद की सेना रखने की इजाजत नहीं थी। सैन्यशक्ति के अभाव में में यह राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों में कोई प्रभावशाली भूमिका नहीं नीभा पाता था। युद्धों को जितने के लिए राष्ट्रों में लगी अस्त्र - शस्त्र की होड़ को संघ रोक पाने में असमर्थ था।
अस्त्र - शस्त्रों की होड़ -- संघ के सदस्य राष्ट्र्रों में अस्त्र - शस्त्रों की होड़ लगी थी। इस प्रकार की होड़ भी असफलता का एक प्रमुख कारण बनी।
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