भारतीय समाज पर नवजागरण का प्रभाव --
समाज के प्रत्येक वर्ग और क्षेत्र पर भारतीय समाज का व्यापक प्रभाव पड़ा नवजागरण ने भारतीय जनमानस में नवचेतना का संचार किया।
अन्धविश्वास और कर्मकाण्ड का विरोध -- नवजागरण का उदय होने से धार्मिक जीवन में कर्मकाण्ड परिवर्तन हुए। सुधार आन्दोलन के प्रवर्तक ने आडंबरो का विरोध कर जनमानस को जागरूक करने का प्रयत्न किया इससे कर्मकाण्ड का प्रभाव कम हो गया।
प्राचीन साहित्य का महत्व -- समाज सुधार आन्दोलन के प्रवर्तकों ने वेद और उपनिषद के प्रति भारतीयों को जागरूक किया। इससे लोगों में प्राचीन दर्शन , साहित्य , कला और विज्ञानं के प्रति रुची पैदा होने लगी। देशभर में संस्कृत भाषा का प्रचार - प्रसार होने लगा।
भारतीय संस्कृति के प्रति झुकाव -- समाज सुधार आन्दोलन ने यह सिद्ध कर दिया था की विश्व की संस्कृतियों में भारत की संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ और प्राचीन है। इससे भारतीयों का झुकाव पाश्चात्य संस्कृति के बजाय फिर से भारतीय संस्कृति के प्रति हो गया था। भारतीय वर्ग में अपने धर्म और दर्शन को जानने के लिए अध्ययन की प्रवृति बढ़ने लगी थी।
सामाजिक कुरीतियों का विरोध -- नवजागरण के उदय से पूर्व भारतीय समाज में दास प्रथा , सती प्रथा , बाल विवाह प्रथा , विधवा विवाह निषेध , बहु - विवाह प्रथा जैसी कुरीतियों व्याप्त थीं। सुधार आन्दोलन के फल्श्वरूप इन कुरीतियों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाए गए। 1829 में सती प्रथा के विरुद्ध कानून बनाया गया। 1843 में दास प्रथा को अवैध घोषित कर दिया गया। 1856 में विधवा पुनर्विवाह कानून को भी अनुमति मिल गई। नवजागरण के सकारात्मक प्रभाव के कारण ही बहु - विवाह प्रथा और पर्दा प्रथा में कमी आई।
जातिगत भेदभाव का विरोध -- समाज सुधार आन्दोलनों के प्रवर्तकों ने जातिगत भेदभाव का विरोध किया। स्वामी विवेकानन्द , दयानन्द सरस्वती , रामकृष्ण परमहंस , ज्योतिबा फूले जैसे महापुरुषों ने अपने उद्देश्यों के माध्यम से जातिगत व्यवस्था पर प्रहार किया , साथ ही मानवता के कल्याण का सन्देश दिया।
सर्वधर्म समभाव की भावना -- नवजागरण के उदय के दौरान संचालित सभी सुधार आन्दोलनों ने सर्वधर्म समभाव का सन्देश दिया। आन्दोलनों के माध्यम से जनता को बताया गया की ईश्वर एक है , जो निराकार है। ईश्वर अजर - अमर है। आपस में प्रेमपूर्वक रहकर समाज हिट में कल्याणकारी कार्य करके ही ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग सम्भव है। सभी धर्मों का एक ही सार है।
स्त्रियों की दिशा में सुधार -- समाज सुधार आन्दोलनों के माध्यम से स्त्रियों की दिशा में व्यापक सुधार आया। महिला अशिक्षा उनकी सामाजिक दुर्दशा का प्रमुख कारण था। अतः समाज सुधरकों ने समाज के कल्याण के लिए स्त्री शिक्षा पर बल दिशा। सती प्रथा , बाल विवाह , कन्या वध , देवदासी प्रथा कुप्रथाएँ भी नवजागरण के कारण ही गैर - कानूनी बन पाई। विधवाओं को पुनर्विवाह की क़ानूनी मान्यता मिलने से सम्मानित्त जीवन जीने का अवसर मिला। महिला शिक्षा का प्रचार - प्रसार बढ़ा , 1926 में ऑल इण्डिया वुमेन कॉन्फ्रेंस की स्थापना हुईं , कलकत्ता में बेंथुन कॉलेज की स्थापना हुई , 1916 में पहला भारतीय मिलला विश्वविद्यालय बना और चिकित्सा क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली में लेडी हाडिंग मेडिकल कॉलेज स्थापित हुआ।
राष्ट्रीयता की भावना का विकास -- जातिगत विरोध और सर्वधर्म समभाव जैसी भावनाओं के उदय के फलश्वरूप लोग एक - दूसरे के निकट आते चले गए। ऐसे में उनमे एकता की भावना का उदय हुआ। आगे चलकर यही एकता राष्ट्रिय एकता में परिवर्तित हो गई , जिस कारण देशप्रेम और देशभक्ति की भावना ने जन्म लिया। इस प्रकार सुधार आन्दोलन ने भी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान दिया।
साहित्य का विकास -- भारतीय जनमानस में जागरूकता लाने के उद्देश्य से विभिन्न लेखकों ने साहित्यिक कृतियों की रचना की। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भारत दुर्दशा नाटक के माध्यम से विदेशी शासन की दुर्दशा का चित्रण किया। बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित आनन्द मठ ने भारतीयों में नवस्फूर्ति और चेतना का संचार किया। इसी दौर में अनेक समाचार - पत्रों का प्रकाशन हुआ। इनमे 1861 में टाइम्स ऑफ इण्डिया 1876 में पायनियर 1868 में अमृत बाजार पत्रिका 1878 में स्टेटसमैन और 1881 में प्रकाशित ट्रिब्यून समाचार - पत्र प्रमुख हैं। इन समाचार - पत्रों और विभिन्न साहित्यिक रचनाओं ने भारतियों को न सामाजिक और धार्मिक वरन राष्ट्रिय क्षेत्र में भी जागरूक किया।
तर्कपूर्ण दृष्टि का विकास -- नवजागरण का प्रभाव लोगों के मष्तिष्क पर पड़ा और वे धार्मिक , सामाजिक तथा अन्य समस्याओं पर तर्कपूर्ण चिन्तन करने लगे। रीति - रिवाजों एवं रूढ़िवादी परम्पराओं को तर्कपूर्ण ढंग से नकारना प्रारम्भ कर दिया। वे अपनी सभी समस्याओं को भी स्वयं हल करने लगे थे।
पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार -- भारत में शिक्षा का प्रसार अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य पद्धति से आरम्भ हुआ। इस शिक्षा के समर्थक राजा राममोहन राय थे। इसका परिणाम यह हुआ की पाश्चत्य संस्कृति , ज्ञान विज्ञानं , समानता व् स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र आदि के विचारों से यहाँ के लोग परिचित हुए। इसी से भारत में शिक्षा के प्रति जन - जागरण आरम्भ हुआ।
समाज के प्रत्येक वर्ग और क्षेत्र पर भारतीय समाज का व्यापक प्रभाव पड़ा नवजागरण ने भारतीय जनमानस में नवचेतना का संचार किया।
अन्धविश्वास और कर्मकाण्ड का विरोध -- नवजागरण का उदय होने से धार्मिक जीवन में कर्मकाण्ड परिवर्तन हुए। सुधार आन्दोलन के प्रवर्तक ने आडंबरो का विरोध कर जनमानस को जागरूक करने का प्रयत्न किया इससे कर्मकाण्ड का प्रभाव कम हो गया।
प्राचीन साहित्य का महत्व -- समाज सुधार आन्दोलन के प्रवर्तकों ने वेद और उपनिषद के प्रति भारतीयों को जागरूक किया। इससे लोगों में प्राचीन दर्शन , साहित्य , कला और विज्ञानं के प्रति रुची पैदा होने लगी। देशभर में संस्कृत भाषा का प्रचार - प्रसार होने लगा।
भारतीय संस्कृति के प्रति झुकाव -- समाज सुधार आन्दोलन ने यह सिद्ध कर दिया था की विश्व की संस्कृतियों में भारत की संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ और प्राचीन है। इससे भारतीयों का झुकाव पाश्चात्य संस्कृति के बजाय फिर से भारतीय संस्कृति के प्रति हो गया था। भारतीय वर्ग में अपने धर्म और दर्शन को जानने के लिए अध्ययन की प्रवृति बढ़ने लगी थी।
सामाजिक कुरीतियों का विरोध -- नवजागरण के उदय से पूर्व भारतीय समाज में दास प्रथा , सती प्रथा , बाल विवाह प्रथा , विधवा विवाह निषेध , बहु - विवाह प्रथा जैसी कुरीतियों व्याप्त थीं। सुधार आन्दोलन के फल्श्वरूप इन कुरीतियों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाए गए। 1829 में सती प्रथा के विरुद्ध कानून बनाया गया। 1843 में दास प्रथा को अवैध घोषित कर दिया गया। 1856 में विधवा पुनर्विवाह कानून को भी अनुमति मिल गई। नवजागरण के सकारात्मक प्रभाव के कारण ही बहु - विवाह प्रथा और पर्दा प्रथा में कमी आई।
जातिगत भेदभाव का विरोध -- समाज सुधार आन्दोलनों के प्रवर्तकों ने जातिगत भेदभाव का विरोध किया। स्वामी विवेकानन्द , दयानन्द सरस्वती , रामकृष्ण परमहंस , ज्योतिबा फूले जैसे महापुरुषों ने अपने उद्देश्यों के माध्यम से जातिगत व्यवस्था पर प्रहार किया , साथ ही मानवता के कल्याण का सन्देश दिया।
सर्वधर्म समभाव की भावना -- नवजागरण के उदय के दौरान संचालित सभी सुधार आन्दोलनों ने सर्वधर्म समभाव का सन्देश दिया। आन्दोलनों के माध्यम से जनता को बताया गया की ईश्वर एक है , जो निराकार है। ईश्वर अजर - अमर है। आपस में प्रेमपूर्वक रहकर समाज हिट में कल्याणकारी कार्य करके ही ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग सम्भव है। सभी धर्मों का एक ही सार है।
स्त्रियों की दिशा में सुधार -- समाज सुधार आन्दोलनों के माध्यम से स्त्रियों की दिशा में व्यापक सुधार आया। महिला अशिक्षा उनकी सामाजिक दुर्दशा का प्रमुख कारण था। अतः समाज सुधरकों ने समाज के कल्याण के लिए स्त्री शिक्षा पर बल दिशा। सती प्रथा , बाल विवाह , कन्या वध , देवदासी प्रथा कुप्रथाएँ भी नवजागरण के कारण ही गैर - कानूनी बन पाई। विधवाओं को पुनर्विवाह की क़ानूनी मान्यता मिलने से सम्मानित्त जीवन जीने का अवसर मिला। महिला शिक्षा का प्रचार - प्रसार बढ़ा , 1926 में ऑल इण्डिया वुमेन कॉन्फ्रेंस की स्थापना हुईं , कलकत्ता में बेंथुन कॉलेज की स्थापना हुई , 1916 में पहला भारतीय मिलला विश्वविद्यालय बना और चिकित्सा क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली में लेडी हाडिंग मेडिकल कॉलेज स्थापित हुआ।
राष्ट्रीयता की भावना का विकास -- जातिगत विरोध और सर्वधर्म समभाव जैसी भावनाओं के उदय के फलश्वरूप लोग एक - दूसरे के निकट आते चले गए। ऐसे में उनमे एकता की भावना का उदय हुआ। आगे चलकर यही एकता राष्ट्रिय एकता में परिवर्तित हो गई , जिस कारण देशप्रेम और देशभक्ति की भावना ने जन्म लिया। इस प्रकार सुधार आन्दोलन ने भी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान दिया।
साहित्य का विकास -- भारतीय जनमानस में जागरूकता लाने के उद्देश्य से विभिन्न लेखकों ने साहित्यिक कृतियों की रचना की। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भारत दुर्दशा नाटक के माध्यम से विदेशी शासन की दुर्दशा का चित्रण किया। बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित आनन्द मठ ने भारतीयों में नवस्फूर्ति और चेतना का संचार किया। इसी दौर में अनेक समाचार - पत्रों का प्रकाशन हुआ। इनमे 1861 में टाइम्स ऑफ इण्डिया 1876 में पायनियर 1868 में अमृत बाजार पत्रिका 1878 में स्टेटसमैन और 1881 में प्रकाशित ट्रिब्यून समाचार - पत्र प्रमुख हैं। इन समाचार - पत्रों और विभिन्न साहित्यिक रचनाओं ने भारतियों को न सामाजिक और धार्मिक वरन राष्ट्रिय क्षेत्र में भी जागरूक किया।
तर्कपूर्ण दृष्टि का विकास -- नवजागरण का प्रभाव लोगों के मष्तिष्क पर पड़ा और वे धार्मिक , सामाजिक तथा अन्य समस्याओं पर तर्कपूर्ण चिन्तन करने लगे। रीति - रिवाजों एवं रूढ़िवादी परम्पराओं को तर्कपूर्ण ढंग से नकारना प्रारम्भ कर दिया। वे अपनी सभी समस्याओं को भी स्वयं हल करने लगे थे।
पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार -- भारत में शिक्षा का प्रसार अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य पद्धति से आरम्भ हुआ। इस शिक्षा के समर्थक राजा राममोहन राय थे। इसका परिणाम यह हुआ की पाश्चत्य संस्कृति , ज्ञान विज्ञानं , समानता व् स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र आदि के विचारों से यहाँ के लोग परिचित हुए। इसी से भारत में शिक्षा के प्रति जन - जागरण आरम्भ हुआ।
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