गाँधीवादी विचारधारा --

भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन के इतिहास में 1919 से 1947 तक का काल महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस काल को गाँधी युग के नाम से जाना जाता है , क्योकि यही वह समय था , जब महात्मा गाँधी राष्ट्रिय आन्दोलन में शामिल हुए। देश को गुलामी से मुक्त करने के लिए महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया। उनके द्वारा चलाए गए असहयोग सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आन्दोलन से जनमानस प्रत्यक्ष रूप से जुड़ता चला गया।

महात्मा गाँधी का प्रारम्भिक जीवन --

महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता  करमचन्द और माता का नाम पुतलीबाई था। 1891 में महात्मा गाँधी इग्लैण्ड से वकालत की उपाधि लेकर भारत आए। इन्होने बम्बई और राजकोट में वकालत की 1893 में वह एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेज अश्वेत और रंगभेद की नीति अपनाते थे। गाँधी जी को भी दुर्व्यवहार सहना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने रंगभेद की इस नीति के खिलाफ सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया ,साथ ही इण्डियन ओपिनियन समाचार पत्र का प्रकाशन किया। उनके आन्दोलन के कारण दक्षिण अफ्रीकी सरकार को रंगभेद नीति  कानून को हटाना पड़ा।

गाँधी जी का भारतीय राजनीति में प्रवेश --

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की कानून को हटवाने के बाद गाँधी जी 6 जनवरी 1915 को भारत आए। यहाँ वे कांग्रेस के नेता गोपालकृष्ण गोखले के सम्पर्क में आए। गोपालकृष्ण गोखले ने गाँधी जी को भारत की राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से शामिल  होने से पहले भारत भृमण का सुझाव दिया। गाँधी जी ने अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के इस सुझाव का पालन करते हुए एक वर्ष तक भारत का भृमण किया। 1916 में उन्होंने अहमदाबाद गुजरात में साबरमती आश्रम की स्थापना की तथा जनहित के कार्यों में लग गए। प्रत्यक्ष भारतीय राजनीति में भागीदारी करते हुए गाँधी जी ने शुरुआत में तीन महत्वपूर्ण आन्दोलन चलाए , जिन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा और दशा दोनों ही बदल दी। वे आन्दोलन थे चम्पारण सत्याग्रह , खेड़ा आन्दोलन तथा अहमदाबाद आन्दोलन।

















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