असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम --
असैनिक श्रमिक व कर्मचारी वर्ग मेसोपोटामिया में जाकर नौकरी करने से इनकार करें।
सरकारी उपाधि एवं अवैतनिक सरकारी पदों को छोड़ दिया जाए।
विदेशी सामानों का पूर्णतः बहिस्कार तथा हठकरया द्वारा खादी के उत्पादन का विकास।
सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिस्कार तथा वकीलों द्वारा न्यायालय का बहिस्कार किया जाए।
सरकार द्वारा आयोजित सरकारी तथा अर्द्ध - सरकारी उतसवो का बहिस्कार किया जाए।
सरकार को कर देने से इनकार किया जाए तथा कानूनों का शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध किया जाए।
राष्ट्रीय एकता को जाग्रत करने के लिए हिन्दू - मुस्लिम एकता का विकास।
असहयोग आन्दोलन की प्रगति --
गाँधी जी ने केसर - ए - हिन्द की उपाधि लौटाकर असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की। बड़ी संख्या में छात्रों ने सरकारी और अर्द्ध - सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार किया। काशी विद्यापीठ , बिहार विद्याथीप , अलीगढ़ विद्यापीठ और गुजरात विद्यापीठ जैसी शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई। मोतीलाल नेहरू , देशबन्धु चितरंजन दास , सरदार वललभाई पटेल , चक्रवती राजगोपालचारी , राजेंद्र प्रसाद आदि ने न्यायालयों का बहिष्कार किया। जगत - जगत विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। स्वदेशी वस्त्रों के प्रचार के लिए घर - घर चरखे चलाए गए। ब्रिटेन के युवराज प्रिन्स ऑफ वेल्स नवंबर 1921 में भारत आए ,तो उनका सार्वजनिक रूप से बहिष्कार किया गया।
असहयोग आन्दोलन का स्थनग --
असहयोग आन्दोलन की व्यापक सफलता को देखकर सरकार ने दमकारी नीतियाँ शुरू कर दी। देशबन्धु चितरंजन दास , मोतीलाल नेहरू , लाला लाजपतराय जैसे महत्वपूर्ण नेताओं सहित हजारों लोगों को बन्दी बना लिया गया। इसी बीच 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी - चौरा नामक स्थान पर हिंसात्मक घटना हो गई। यहाँ पुलिस ने एक जुलूस को रोकने के लिए गोली चलाई तो जनता क्रोधित हो गई। भीड़ ने थाने में आग लगा दी ,जिससे एक थानेदार और 21 सिपाहियों की मौत हो गई। इस घटना से गाँधी जी को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया। सारा देश गाँधी जी इस निर्णय से स्तम्भ रह गया। आन्दोलन के स्थगित करने का प्रभाव गाँधी जी की लोकप्रियता पर भी पड़ा। 23 मार्च 1922 को गाँधी जी को गिरफ्तार कर 6 वर्ष के कड़े कारावास में रखा गया , स्वास्थ्य संबन्धी कारणों से उन्हें 5 फरवरी , 1924 को रिहा कर दिया गया।
असैनिक श्रमिक व कर्मचारी वर्ग मेसोपोटामिया में जाकर नौकरी करने से इनकार करें।
सरकारी उपाधि एवं अवैतनिक सरकारी पदों को छोड़ दिया जाए।
विदेशी सामानों का पूर्णतः बहिस्कार तथा हठकरया द्वारा खादी के उत्पादन का विकास।
सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिस्कार तथा वकीलों द्वारा न्यायालय का बहिस्कार किया जाए।
सरकार द्वारा आयोजित सरकारी तथा अर्द्ध - सरकारी उतसवो का बहिस्कार किया जाए।
सरकार को कर देने से इनकार किया जाए तथा कानूनों का शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध किया जाए।
राष्ट्रीय एकता को जाग्रत करने के लिए हिन्दू - मुस्लिम एकता का विकास।
असहयोग आन्दोलन की प्रगति --
गाँधी जी ने केसर - ए - हिन्द की उपाधि लौटाकर असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की। बड़ी संख्या में छात्रों ने सरकारी और अर्द्ध - सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार किया। काशी विद्यापीठ , बिहार विद्याथीप , अलीगढ़ विद्यापीठ और गुजरात विद्यापीठ जैसी शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई। मोतीलाल नेहरू , देशबन्धु चितरंजन दास , सरदार वललभाई पटेल , चक्रवती राजगोपालचारी , राजेंद्र प्रसाद आदि ने न्यायालयों का बहिष्कार किया। जगत - जगत विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। स्वदेशी वस्त्रों के प्रचार के लिए घर - घर चरखे चलाए गए। ब्रिटेन के युवराज प्रिन्स ऑफ वेल्स नवंबर 1921 में भारत आए ,तो उनका सार्वजनिक रूप से बहिष्कार किया गया।
असहयोग आन्दोलन का स्थनग --
असहयोग आन्दोलन की व्यापक सफलता को देखकर सरकार ने दमकारी नीतियाँ शुरू कर दी। देशबन्धु चितरंजन दास , मोतीलाल नेहरू , लाला लाजपतराय जैसे महत्वपूर्ण नेताओं सहित हजारों लोगों को बन्दी बना लिया गया। इसी बीच 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी - चौरा नामक स्थान पर हिंसात्मक घटना हो गई। यहाँ पुलिस ने एक जुलूस को रोकने के लिए गोली चलाई तो जनता क्रोधित हो गई। भीड़ ने थाने में आग लगा दी ,जिससे एक थानेदार और 21 सिपाहियों की मौत हो गई। इस घटना से गाँधी जी को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया। सारा देश गाँधी जी इस निर्णय से स्तम्भ रह गया। आन्दोलन के स्थगित करने का प्रभाव गाँधी जी की लोकप्रियता पर भी पड़ा। 23 मार्च 1922 को गाँधी जी को गिरफ्तार कर 6 वर्ष के कड़े कारावास में रखा गया , स्वास्थ्य संबन्धी कारणों से उन्हें 5 फरवरी , 1924 को रिहा कर दिया गया।
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