राष्ट्रीय आन्दोलन 1923 - 39 --

स्वराज्य दल -- असहयोग आन्दोलन की असफलता से दुःखी होकर 1923 में चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने विधानपरिषद का बहिस्कार करने के बदले उनमे प्रवेश कर असहयोग की नीति अपनाने का सुझाव दिया। 31 दिसंबर 1922 को चितरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू , विटठलभाई पटेल , मदन मोहन मालवीय आदि के साथ मिलकर स्वराज्य दल  इलाहाबाद में स्थापना की। चितरंजन दास स्वराज्य दल के अध्यक्ष और मोतीलाल नेहरू सचिव बनाए गए। 1923 के चुनावों में स्वराज्य दल ने मध्य प्रान्त में पूर्ण बहुमत , बंगाल , उत्तर प्रदेश , बम्बई प्रान्त में प्प्रधानता और केन्द्रीय विधानसभा में 101  से 45 स्थान प्राप्त किए। इस कारण स्वराज्य दल के सदस्य विटठलभाई पटेल केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष भी चुने गए।

स्वराज्य दल के सदस्यों ने भारत शासन अधिनियम 1919 में सुधार करने की माँग उठाई। विवश होकर सरकार ने अधिनियम में सुधार के लिए भारत में एक आयोग भेजने की घोषणा की। 1924 में स्वराज्य दल ने बजट को भी अस्वीकार कर दिया। 1926 में स्वराज्य दल का कांग्रेस में विलय हो गया।

साइमन कमीशन 1927 -- 1919 के भारत शासन अधिनियम में यह व्यवस्था की गई थी कि 10 वर्ष उपरान्त एक ऐसा आयोग गठित किया जाएगा , जो इस बात की जाँच करेगा कि इस अधिनियम में कौन - कौन से परिवर्तन सम्भव है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने समय से पूर्व ही 8 नवंबर 1927 को सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में कमीशन का गठन कर दिया। कमीशन का कार्य इस बात का पता लगाना था कि भारतीय उत्तरदायी शासन का संचालन करने के योग्य थे या नहीं। कमीशन के सभी सात सदस्यों में से कोइ भी भारतीय नहीं था। इस कारण भारत में साइमन कमीशन का तीव्र विरोध हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस , मुस्लिम लीग और अन्य सभी राजनितिक दलों ने साइमन कमीशन के बहिस्कार का निर्णय लिया।

साइमन कमीशन का बहिस्कार -- 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन बम्बई पहुँचा तो विरोध में हड़ताल की गई। भारतीयों ने काले झण्डे दिखाए और साइमन वापस जाओ के नारे लगाए। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपतराय पर पुलिस अधिकारी साण्डर्स ने लाठी चार्ज किया। लाला लाजपतराय बुरी तरह घायल हो गए और कुछ ही दिन बाद उनकी मोत हो गई।

27 मई 1930 को साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की कमीशन की रिपोर्ट में भारतियों के हितों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं था , लिहाजा जनमानस को यह रिपोर्ट सन्तुष्ट नहीं कर सकी।

नेहरू रिपोर्ट 1928 -- साइमन कमीशन के विरोध एवं बहिस्कार के पूर्व ही 1925 में लार्ड बर्कनहेड ने कांग्रेस नेताओं को यह चुनौती दी कि वह संविधान का मसविदा तैयार कर सके , तो ब्रिटिश सरकार उस पर विचार कर सकती है। फरवरी 1928 में इसी मुददे लेकर एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ। अगला सम्मेलन 19 मई , 1928 को बम्बई में हुआ। इसमें भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए पण्डित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता  आठ - सदस्यीय समिति गठित की गई। इस समिति ने 10 अगस्त 1928 को लखनऊ सम्मेलन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट को ही नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है

1  भारत में अधिराज्य की स्थापना की जाए।

2  साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को समाप्त करके अल्पसंख्यकों के लिए स्थान सुरक्षित किए जाएँ।

3  प्रान्तों में द्वैध शासन समाप्त करके प्रान्तीय स्वायत्तता प्रदान की जाए।

4  भारत में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हो और इग्लैण्ड की प्रिवी काउन्सिल को अपील भेजना बन्द किया जाए।

5  सभी देशी रियासतें जो ब्रिटिश क्राउन के अधीन है , केन्द्र के अधीन की जाएँ।

6  भारत में स्थापित संघीय शासन में केन्द्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान की जाएँ।

नेहरू रिपोर्ट एक प्रगतिशील प्रयास था , किन्तु ब्रिटिश सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया।

लॉर्ड इरविन की घोषणा -- इग्लैण्ड में 1929 में रैम्जे मेकडॉनल्ड प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारतीयों की समस्या पर विचार करने  के लिए लॉर्ड इरविन को इग्लैण्ड बुलाया। वहाँ से लौटकर लॉर्ड इरविन ने 31 अक्टूबर 1929 को एक घोषणा की कि सरकार की इच्छा के अनुसार 1917 की घोषणा में यह बात शामिल है कि भारत को अन्त में औपनिवेशिक साम्राज्य प्रदान किया जाएगा।

इस घोषणा में यह नहीं बताया गया था कि स्वराज्य कब तक प्रदान किया जाएगा। इस विषय को लेकर गाँधी जी ने 23 दिसंबर 1929 को लॉर्ड इरविन से वार्ता की , लेकिन वायसराय ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया जिससे कांग्रेस को निराशा उठानी पड़ी।

लाहौर अधिवेशन -- 25 दिसंबर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 44 वां अधिवेशन रावी नदी के किनारे लाहौर में शुरू हुआ। 31 दिसंबर 1929 को इस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया गया और निर्णय लिया गया कि 26 जनवरी 1930 को प्रतिवर्ष सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा। 26 जनवरी 1930 को देश में प्रथम बार सभी नगरों और गाँवों में स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन किया गया।






























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