सविनय अवज्ञा आन्दोलन --

भारतीयों की माँगों के प्रति अंग्रेजी सरकार के निरस्त उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाने से महात्मा गाँधी यह समझ गए की ब्रिटिश सरकार स्वेच्छा से भारत को स्वराज्य प्रदान नहीं करेगी। इसके लिए भारतीयों को व्यापक स्तर पर एक आन्दोलन करना पड़ेगा। गाँधी जी द्वारा वायसराय लॉर्ड इरविन के सम्मुख रखे  गए माँग - पत्र पर विचार नहीं होने के कारण सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हो गया था। यह आन्दोलन दो चरणों में हुआ। पहला चरण मार्च 1930 से मार्च 1931 तह चला तथा दूसरा चरण 1932 में प्रारम्भ हुआ।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण --

साइमन कमीशन को लेकर असन्तोष -- 1928 में भारत आए साइमन कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य शामिल नहीं था। कमीशन की ओर से जारी रिपोर्ट में भी भारतियों के हितों की बात नहीं की गई। इस बात से नाराज कांग्रेस एवं अन्य दलों ने कमीशन का बहिस्कार करके हड़तालों , काली झण्डियों तथा साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे से उसका स्वागत किया। भारतीय जनता में ब्रिटिश सरकार के प्रति असन्तोष और अधिक बढ़ गया।

नेहरू रिपोर्ट की उपेछा --  भारतीय दलों के नेताओं ने संविधान के निर्माण के लिए 10 अगस्त 1928 को जो नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की थी ,लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उसे लेकर उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाया। इस कारण भारतीयों को संवैधानिक और उत्तरदायी शासन की माँग की स्वीकृति की सम्भावना समाप्त होती दिखी। 31 दिसंबर 1929 के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने औपनिवेशिक स्वराज्य के स्थान पर पूर्ण स्वतंत्रता को अपना लक्षय घोषित कर इसके लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय किया।

दयनीय आर्थिक स्थिति -- ब्रिटिश सरकार की नीतियों के कारण उस समय देश म आर्थिक मन्दी उतपन्न हो गई थी। किसान और मजदूरों की आर्थिक दशा निरन्तर दयनीय होती जा रही थी। ऐसे में लोगों ने ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने के लिए गाँधी जी के नेतृत्व में आन्दोलन करने का निश्चय किया।

बारदोली सत्याग्रह की सफलता -- 1928 में सरदार वललभभाई पटेल के नेतृत्व में बारदोली सत्याग्रह किया गया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा गुजरात के सूरत जिले के बारदोली ग्राम में बिना किसी उचित आधार के किसानों के लिए भू - राजस्व में लगभग 25 % की वृद्धि कर दी गई थी , प्रतिक्रियास्वरूप किसानों ने इस कर वृद्धि को देने से स्पष्ट इनकार कर दिया था। सत्याग्रह के दवाब में सरकार को झुकना पड़ा था। आन्दोलन की सफलता से कांग्रेस का मनोबल बढ़ गया था।

गाँधी जी की 11 सूत्री माँगें -- महात्मा गाँधी ने 31 जनवरी 1930 को 11 सूत्रीय माँग - पत्र ब्रिटिश सरकार को सौंपा था इन मांगों ने नमक कर समाप्त करने की माँग भी शामिल थी। गाँधी जी के तर  पत्र पर सरकार ने कोई सकारात्मक रुख नहीं अपनाया। इससे महात्मा गाँधी और भारतीयों में निराशा उतपन्न हो गई थी। आन्दोलन शुरू होने से पूर्व भी उन्होंने वायसराय को एक पत्र लिखा था , जिसमे महात्मा गाँधी ने भारतीयों की दुर्दशा पर विचार करने के लिए वायसराय को 11 मार्च 1930 तक का समय दिया था।

गाँधी जी का अहिंसा में विश्वास -- ब्रिटिश सरकार को गलत नीतियों और झूठे आस्वासनों से जनता में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा था तथा जनता हिंसात्मक गतिविधियों की और अग्रसर हो रही थी ऐसी स्थिति में गाँधी जी की अहिंसक विचारधारा जनता का मार्गदर्शक बनी। गाँधी जी का विश्वास था कि तत्कालीन परिस्थितियों में केवल सविनय अवज्ञा आन्दोलन ही देश को अराजकता की स्थिति से मुक्ति दिला सकता है।

















Comments

Popular posts from this blog

Water Crisis - जल संकट से जूझता मानव

जल प्रवाह प्रणाली

Eco Club