भारत के विभाजन के कारण
यह पोस्ट शिछा उद्देश्यों के लिए है। इस पोस्ट द्वारा हम किसी धर्म या व्यक्ति विशेष को सही या गलत बताने की कोशिश नहीं कर रहे है।
भारत के विभाजन के कारण --
भारत को एक लम्बे संधर्ष के बाद अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिली थी। लेकिन इसके साथ ही विभाजन का दुःख भी मिला। भारत के विभजन के कारण निम्नलिखीत थे।
सम्प्र्रदायिकता की भावना --
आजादी के संघर्ष के दौरान ही हिन्दू और मुसलमानों में साम्प्रदायिकता की भावना पनपने लगी थी। मुसलमानों को यह डर था कि वह भारत में अल्प संख्या में रहें , तो विकास की दौर में पिछड़ जायेंगे। ऐसे में उन्हें अलग राज्य की आवश्यकता होने लगी।
फूट डालो और राज करो की नीति --
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद से ही अंग्रेजों ने अपने साशन को चलाने के लिए फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई और हिन्दू व् मुसलमानों में अलगाव उतपन्न किया , उन्होंने मुस्लिम लीग और कांग्रेस में फूट डाली और पाकिस्तान की माँग का अप्रत्यक्ष समर्थन किया। इस नीति ने भारत का विभाजन तय क्र दिया था।
मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र --
भारत विभाजन से पहले उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त मुस्लिम - बाहुल्य क्षेत्र था। मुसलमानों ने अपने क्षेत्र को अलग करके ही मुस्लिम राज्य के निर्माण की माँग उठाई थी।
गृह युद्ध की सम्भावना --
ब्रिटेन के तत्कालीन प्रथानमंत्री क्लीमेण्ट एटली ने भारत को आजाद करने की बात कहि थी। ऐसे में भारतीयों को लगने लगा की ब्रिटिश सरकार , भारत का विभाजन दो से अधिक राज्यों में भी कर सकती है या फिर किसी और को सत्ता सौंप को सत्ता सौंप सकती है। दोनों ही हालात में गृह - युद्ध की सम्भावना बन जय थी। अतः कांग्रेस ने माउंबेटन योजना को अपनी स्वीकृति दे दी।
जिन्ना की हट --
मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान की माँग पर अडे थे , उन्होंने मुसलमानों को भड़काया और 16 अगस्त 1946 को सीधी कार्यवाही दिवस के रूप में मनाया गया। मुसलमानों ने सरकारी कामकाज में बाधा डाली और जान - माल की भारी क्षति हुई। आख़िरकार कांग्रेस समझ गई कि मुस्लिम लीग से समझौता असम्भव है। अतः उन्होंने विभाजन को स्वीकार कर लिया।
मुसलमान नेताओ के राजनैतिक हित
मोहमद अली जिन्ना सक्रिय राजनीती में महत्वपूर्ण पद चाहते थे उन्हें डर था कि यदि विभाजन नहीं हुआ तो भारत में हिन्दू नेता सक्रिय राजनीती से उन्हें बाहर कर देंगे अनेक मुस्लिम नेता भी अपने राजनितिक हिट साधना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने भारत विभाजन की माँग को जोर - शोर से हवा दी।
माउण्टबेटन की भूमिका --
भारत के विभाजन में अन्तिम वायसराय लॉर्ड माउण्टबेटन की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उसका मनना था कि , कांग्रेस और मुस्लिम लीग कभी एक साथ नहीं चल सकते हैं। उसने कांग्रेस पार्टी के नेताओं को विभाजन के लिए तैयार कर लिया था। इस कार्य में उनकी पत्नी लेडी माउण्टबेटन ने भी सहयोग किया।
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