EROSION OR SOIL - EROSION
मृदा अपरदन या भू - क्षरण
जल एवं वायु के प्रभाव के द्वारा मिटटी की ऊपरी परत का बहकर या उड़कर स्थानान्तरित हो जाना तथा मिटटी के उपजाऊ कणों को प्रकृति द्वारा हटाया जाना ही मृदा अपरदन या भू - क्षरण कहलाता है।
भारत में जल द्वारा मिट्टी का कटाव अधिक पभावशाली है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में चंबल के बीहड़ इसी अपरदन क्रिया द्वारा निर्मित है। अकेली गंगा नदी प्रतिवर्ष 30 करोड़ टन मिट्टी ले जाकर बंगाल की खाड़ी में डालती है। एक बार भूमि की ऊपरी परत नष्ट हो जाने के कारण , वहाँ किसी प्रकार की वनस्पति का पैदा होना असम्भव हो जाता है। इसलिए मिट्टी के अपक्षरण को रेंगती हुई मृत्यु भी कहते है।
मृदा अपरदन के प्रकार --
समतल या चादरी भू - क्षरण -- वायु अथवा जल के द्वारा जब पृथ्वी की ऊपरी कोमल सतह को काटकर उड़ा दिया जाता है अथवा बहा दिया जाता है , जिससे भू - तल के समतल क्षेत्र अधिक मात्रा में क्षरण के शिकार हो जाते है , तो इसे समतल या चादरी भू - क्षरण कहते है।
नलीनुमा भू - क्षरण -- तीव्र गति वाली नदियों का जल जब भूमि में गहरी एवं संकरी नालियाँ बना देता है , तब भूमि का बहाव नलीनुमा भू - क्षरण कहलाता है।
मृदा अपरदन के कारण
वनों की अंधाधुन्द कटाई अर्थात वनोन्मूलन -- पेड़ों की जड़े मिट्टी को जकड़कर बाँधे रखती है। पौधों को काट दिया जाने पर मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है , जिससे नदियों के जल द्वारा इसका अपरदन आसानी से हो जाता है।
पेड़ - पौधों की पत्तियाँ एवं टहनियाँ भी गिरकर सड़ने के पश्चात मृदा में हूमस की मात्रा में वृद्धि करती है।
अनियंत्रित चराई -- पशुओं द्वारा अनियंत्रित चराई करने से कभी - कभी भूमि का ऊपरी हरा आवरण समाप्त होने लगता है , ऐसी स्थिति में वायु एवं जल द्वारा अधिक अपरदन होता है।
अवैज्ञानिक तरीके से कृषि -- कृषि से समुचित तरीकों में अथवा वैज्ञानिक तरीके की कृषि में खेतों की समोच्चरेखीय जुताई की जाती है , साथ ही फसल चक्र का भी ध्यान रखा जाता है। इन तरीकों पर ध्यान नहीं देने से भी मृदा का अपरदन होता है। मृदा का अपरदन होता है। मृदा के अवक्रमण में भूमि का एक प्रमुख कारण अति सिंचाई भी है।
झूमिंग कृषि अथवा स्थानान्तरित कृषि -- इस प्रकार की कृषि में वनों या जंगलों को काटकर साफ करके कृषि की जाती है। इस प्रकार वनों के साफ होने से खाली भूमि का भी अपरदन होता है।
मूसलाधार वर्षा -- मूसलाधार वर्षा के कारण यह मिट्टी को अपने साथ बहाकर ले जाती है , जिससे मृदा अपरदन होता है।
वायु अपरदन -- मरुस्थलीय व् अर्द्ध - मरुस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ जल की कमी होती है , वहाँ मिट्टी की उपजाऊ क्षमता नष्ट होने लगती है।
मृदा अपरदन से हानियाँ
1 उपजाऊ भूमि के नष्ट होने के कारण कृषि उत्पादकता में कमी आती है।
2 आकस्मिक एवं भीषण बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है।
3 बालू के जमा होने के कारण नदियों , नहरों तथा बंदरगाहों के मार्ग बन्द हो जाते है।
4 सूखे की लम्बी अवधि के कारण फसलें नष्ट हो जाती है।
5 कुओं , नलकूप ट्यूबवेलों में जल स्तर नीचा हो जाता है , जिससे सिचाई में बाधा आती है।
मृदा संरक्षण
मृदा संरक्षण का अर्थ मिट्टी में फसलें तब तक ही उगाई जा सकती है , जब तक मिट्टी में उपजाऊ क्षमता विद्यमान है। अतः यह आवश्यक है कि मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखा जाए। मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनाए रखने व् मृदा अपरदन रोकने के लिए किए गए उपाय मृदा संरक्षण कहलाते है।
मृदा संरक्षण की आवश्यकता भूमि के अपरदन से भौतिक क्षति के अतिरिक्त आर्थिक हानि भी होती है , क्योकि भूमि की इस ऊपरी परत में ही वनस्पतियों के उगने के लिए पोषक तत्व उपस्थित रहते है। इस सतह के नष्ट हो जाने के साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी नष्ट हो जाती है। अतः मिट्टी की आर्थिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इसका संरक्षण करना आवश्यक है।
मृदा संरक्षण के उपाय अथवा सुझाव
वृक्षआरोपण -- इसके अन्तर्गत्त खाली पड़ी भूमि पर तथा कृषि भूमि की मेड़ों पर वृक्षआरोपण करना चाहिए , क्योकि वृक्षो की जड़े मृदा को संगठित कर जकड़े रहती है।
खेतों में मेड निर्माण -- खेतों में मेड के निर्माण से वर्षा के जल द्वारा होने वाले मिट्टी के वहाव से सुरक्षा होती है। अतः खेतों के किनारे ऊँची मेड बनानी चाहिए।
मृदा अपरदन का सर्वेक्षण -- समय समय पर मृदा अपरदन का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। यह कार्य वर्ष 1953 में स्थापित केंद्रीय भू - संरक्षण बोर्ड द्वारा किया जाता है।
पंक्तिबद्ध पौधरोपड़ -- मरुस्थलीय एवं शुष्क भागो में खेतों की मिट्टी के संरक्षण के लिए पंक्तिबद्ध रूप में पौधो को लगाया जाना चाहिए , जिससे तेज हवाओं के कारण मिट्टी को उड़ने से बचाया जा सके।
बांधों का निर्माण --
नदियों के द्वारा लाई जाने वाली बाढ़ की भयावह स्थिति से बचने के लिए बड़ी - बड़ी नदियों के पास बांधों का निर्माण आवश्यक है। बांध के निर्माण द्वारा हम पानी को भी नियंत्रित कर सकते है तथा मिट्टी को भी संरक्षित किया जा सकता है।
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