फ्रिज में रखा भोजन क्यों है हानिकारक, क्या आप को खाना बनाना आता है ? Health Series Post 4 of 100

क्या आप को खाना बनाना आता है ??  


                   खाना बनने के 48 मिनट तक इसका उपयोग हो जाना चाहिए यह वाग्भट्ट जी का सूत्र है। 48 मिनट से उनका तात्पर्य है कि 48 मिनट तक पोशक तत्व भोजन के खराब नहीं होंते। फिर धीरे-धीरे भोजन के पोशक तत्वों की पोशकता प्रोटीन, विटामिन कम होती जाती है। और भोजन वाशा होता जाता है। वाशे  का मतलव है पोशक तत्वों का अभाव हमारे शरीर वात पित्त कफ तीनों सम रहने पर कोई रोग नहीं होता। पोशक तत्व हमें मिलते रहें ताजी भोजन के माध्यम से तो त्रिदोश सम रहते हैं। 

फ्रिज में रखा भोजन क्यों है हानिकारक। 


                       फ्रिज में रखा भोजन और भी विशैला हो जाता है क्यों कि फ्रिज में जो गैस होती है जिनकी वजह से वस्तुऐं ठण्डी रहती हैं वह षरीर के लिए जहरीली होती हैं। इसलिए आप फ्रिज में सब्जी, दाल, आटा ना रखें यह और भी वाषा हो जाता है। फ्रिज में प्रयोग होने वाली गैस CFE1 CFE2 CFE3 CFE12 इन्ही गैसो की बजह से पर्यावरण भी दूशित हो रहा है। वनस्पति आदि को बहुत हानि पहुॅचा रही है। ये वैज्ञानिकों की रिर्पोट है अतः फ्रिज का प्रयोग हमारे स्वास्थ के लिये बहुत हानिकारक है। फ्रिज में रखा खाना नहीं खायें।


                   48 मिनट में ही बनने के बाद खाना खाया जाए इसे जैन धर्म ने अहिंसा से जोड़ा है। जैन धर्म के अनुसार पके हुऐ भोजन में 48 मिनट के बाद जीव पैदा हो जाते हैं। ये जीव राषी बढ़ती चली जाती है इसलिये ऐसा भोजन नहीं खाना चाहिये जो 48 मिनट के बाद का है, जिसमे जीव पैदा हो जाते हैं। जिससे अधिक हत्या न हो। जैन दर्षन में इसे अहिंसा के साथ जोड़ा है। वाग्भट्ट जी ने इसे स्वास्थ्य के साथ जोडा है मूल वात एक ही है। 

                     शायद जैन धर्म ने इसी लिये इसे धर्म से जोड़ा है कि हमारा धर्म के नाम पर धर्म के प्रति झुकाव है। इसलिये हमारे देश  में धर्म व धार्मिक व्यक्तियों की पूजा होती है एक वैज्ञानिक का भारत में इतना महत्व नहीं है जितना कि किसी संत का है। संत के प्रति हृदय से श्रद्धा होती है इसका कारण है कि हमारे खून में डी एन ए  में पूर्व नियम संस्कार पडे हुए हैं।

                   प्रायः देखा गया है कि गर्म देषों में रहने वाले मानव का डी एन ए और ठन्डे देषों के मानव का डी एन ए में काफी अन्तर है। जो दुनिया के गर्म देष हैं जैसे एषिया महाद्वीप में सारे धर्मो का जन्म हुआ सनातन, इस्लाम, ईसाई धर्म सभी गर्म देषोें से निकले। इजराइल देष में एक जगह है वैथलम यहाॅ से ईसाई धर्म का जन्म हुआ और इसी वैथलम से इस्लाम धर्म का जन्म हुआ ये दोनों स्थान वैथेलम में मात्र 100 फुट की दूरी पर है इसी जगह के बटवारे  में फिलिस्तीन और इजराइल की लडाई है। ये देष एषिया महाद्वीप में आते हैं जो दुनिया के पूरव में हैं। पूरवी लोगों के खून का डी एन ए धर्म में रूची रखता है। पष्चिम से कोई धर्म नहीें निकला पष्चिम भौतिकवाद में विष्वास रखता है। इनके खून का डी एन ए  भौतिक वादी है।

               जैन धर्म ने खाने का समय धर्म से जोड़ दिया जिससे धर्म में आस्था रखने वाले लोग भोजन पकाने के 48 मिनट के अन्दर भोजन खा लेना चाहिये। इसके बाद वह बासा हो जाता है, पष्चिमी देषों की परिस्थिति भिन्न है। वहाॅ का जलवायु ठण्डा है, महीनों सूर्य दिखाई नही देता। रोटियाॅ बनाना वहाॅ कोई जानता नहीं है। डबल रोटी, पीजा, वर्गर से ही गुजारा करते है। हमारे देष का सौभाग्य है कि जलवायु वातावरण अनुकूल होने के कारण गर्म ताजी रोटी खाने के पूर्ण अवसर हैं।


       वाग्भट्ट जी आटे के विशय में कहते हैं कि आटा ताजी हो उतने ही पोशक तत्व माइक्रोन्यूअियन्स अधिक मिलेंगे। जो अच्छे स्वास्थ के लिये लाभदायक है। गेहॅू का पिसा हुआ आटा 15 दिन। मक्का चना ग्वार आदि का आटा 7 दिन से अधिक पुराना नहीं होना चाहिये।




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