अप्रत्यक्ष कर INDIRECT TEX
अप्रत्यक्ष कर
ये वे कर होते है , जो सरकार द्वारा लोगों से अप्रत्यक्ष रूप से वसूल किये जाते हैं। इन करों की अदायगी करदाता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं की जा जाती है जैसे - बाजार से कोई वस्तु खरीदने पर उसका विक्री कर दुकानदार वस्तु के मूल्य के साथ ही वसूल लेता है और सरकार को उसका भुगतान करता है।
डालटन के शब्दों में अप्रत्यक्ष कर वे कर है , जो लगाए तो किसी एक व्यक्ति पर जाते है , किन्तु इनका आंशिक या पूर्णरूप से भुगतान किसी अन्य व्यक्ति को करना पड़ता है।
जे एम् मिल के अनुसार परोक्ष कर एक ऐसे व्यक्ति से इस आशा से लिया जाता है कि वह इसे किसी दूसरे व्यक्ति से वसूल कर अपनी क्षतिपूर्ति कर लेगा।
अप्रत्यक्ष कर के गुण --
इसे टाला नहीं जा सकता इन करों से बचना या इन्हे टालना व्यक्ति के लिए कठिन है , क्योकि यह वस्तु के मूल्य के साथ ही वसूल लिए जाते है।
लोचदार होना अगर इन करों की दर को परिवर्तित क्र दिया जाए तो आय की मात्रा भी परिवर्तित हो जाती है। अतः यह कर लोचदार है।
भुगतान करने में आसान चूँकि इन करों को वस्तु की कीमत के साथ ही वसूल लिया जाता है। अतः इनका भुगतान करने में लोगों को कोई कठिनाई नहीं होती है।
इनका आधार विस्तृत है अमीर हो चाहे गरीब , ये कर सभी पर लागू होते है और किसी न किसी रूप में सभी से वसूल किए जाते हैं।
समानता के दृष्टिकोण से -- चूँकि धनी लोग विलासिता की वस्तुओं का अधिक उपभोग करते हैं। अतः उन वस्तुओं पर ये कर उच्च दर से लिए जाते हैं , जिससे समानता की स्थिति बनी रहती है।
हानिकारक वस्तुओं पर रोक -- समाज के लिए जो वस्तु हानिकारक है , उन पर उच्च दर से ये कर लगा कर उनकी बिक्री को कम किया जा सकता है।
विविधता ये कर अलग - रूपों में प्रत्येक व्यक्ति से वसूल किए जाते हैं। अतः इन करों में विविधता पाई जाती है।
अप्रत्यक्ष कर के दोष --
उत्पादन में कमी का होना -- इन करों की वजह से वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं जिसका प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है। अतः उत्पादन की दृष्टि से ये दोषपूर्ण हैं।
अनिश्चितता की स्थिति का होना-- हालाँकि सरकार इन करों को प्रत्येक से वसूल करती है , परन्तु फिर भी सरकार को यह नहीं पता होता कि इनसे कितना आय प्राप्त होगी अतः इनकी स्थिति अनिश्चित है।
कर की चोरी का भय -- कई बार दुकानदार ग्राहक से कर ले लेता है , परन्तु सरकार को उसका भुगतान नहीं करता है। अतः चोरी की सम्भावना इनमें बनी रहती है।
महँगाई का बढ़ना -- इन करों की दरों में वृद्धि करने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है , जिससे महँगाई बढ़ती है।
अवरोही प्रवृत्ति का होना -- कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका भार अमीरों पर कम तथा गरीबों पर अधिक पड़ता है। अतः यह अवरोही प्रवृत्ति के हैं।
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में समबन्ध --
जिस वस्तु के गुण होते हैं , उसके कुछ दोष भी होते हैं , उसी प्रकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में कुछ गुण व् कुछ दोष पाए जाते हैं , परन्तु दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं , बल्कि पूरक हैं। अनेक विद्वानों ने इनके बारे में अपने विचार दिए हैं।
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