भारत के विदेशो व्यापार की दिशा --
भारत के विदेशो व्यापार की दिशा --
विदेशी व्यापार की दिशा से तातपर्य उन राष्ट्रों से है , जिन्हे कोई राष्ट्र वस्तुओं का निर्यात करता है। तथा राष्ट्रों से वह वस्तुओं का आयात करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत के विदेशी व्यापार की दिशा में काफी परिवर्तन आया है।
भारत का व्यापार किसी विशेष देश या क्षेत्र तक सीमित न रहकर विश्वव्यापी हो गया है
स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ समय बाद तक भारत प्राथमिक वस्तुओं का निर्यातक देश था , लेकिन अब इंजीनियरिंग , आभूषण , साँफ्टवेयर आदि का मुख्य निर्यातक है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत खाद्यान्न आयातक देश था , जो अब निर्यातक राष्ट्र बन गया है।
पहले कुल आयात में पेट्रो पदार्थों की हिस्सेदारी वर्तमान समय जितनी नहीं थी।
पिछले दो दशकों में निर्यात की दिशा पूर्वी एशिया की तरफ हो गई है।
वर्तमान समय में फोकस अफ्रीका के अन्तर्गत अफ्रीकी देशों से विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने पर बल दिया जा रहा है।
विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएँ --
भारत का अधिकांश व्यापार लगभग 90 % समुद्री मार्गों से होता है।
भारतीय उत्पाद का 27% निर्यात पश्चिमी यूरोपीय देशों , 20% उत्तरी अमेरिकी देशों को 51% एशियाई एवं आस्ट्रेलियाई देशों को तथा शेष अफ़्रीकी एवं दक्षिणी अनेरिकी देशों को होता है।
इसी प्रकारआयात का 26% पश्चिमी यूरोपीय देशों , 39% एशियाई देशों , 13% उत्तरी अमेरिकी देशों तथा शेष अफ़्रीकी देशों से होता है।
भारत का सर्वाधिक व्यापार संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ होता है।
विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 1% से भी कम 0.67% है।
भारत के विदेशी व्यापार का भुगतान सन्तुलन स्वतंत्रता के बाद से ही भारत के पक्ष में नहीं रहा है।
भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार लगभग 35 देशों देशों से होता है।
भारतीय आयात का लगभग 33% हिस्सा केवल पेट्रोकियम पदार्थों का होता है।
व्यापार का भुगतान सन्तुलन के प्रतिकूल रहना।
विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने के सुझाव -- भारत का विदेशी व्यपार भारत लिए अधिक लाभदायक नहीं है , क्योकि इसमें निर्यात की अपेक्षा आयात की मात्रा अधिक है।
विनिर्माण क्षेत्रक को प्रोत्साहन दिया जाए।
उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार किया जाए।
निर्यात संवर्द्धन के लिए नए बाजारों की खोज तथा प्रोत्साहन नीतियों को प्रारम्भ किया जाए।
निर्यातकों को मौद्रिक प्रोत्साहन दिया जाए।
कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण पर जोर दिया जाए।
द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय , व्यापारिक समझौतों पर बल दिया जाए।
प्रशासनिक एवं नीतिगत जटिलताओं को दूर किया जाए।
फोकस एशिया तथा फोकस अफ्रीका जैसी व्यापारिक नीतियों को बढ़ावा दिया जाए।
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